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________________ 618 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature का गम्भीर अध्ययन किया, जैन ग्रन्थों का सम्पादन व प्रकाशन करवाया एवं विद्वत्तापूर्ण निबन्ध लिखे। इससे जैन-धर्म और साहित्य को एक नयी दिशा मिली। क्योंकि उन निष्पक्ष विद्वानों ने एक नया वातावरण तैयार किया। उन्होंने बहुत-सी प्रचलित बातों की सच्चाई की जाँच-पड़ताल की। उस समय जो बहुत से लोगों की यह आम धारणा बनी हुई थी कि बौद्ध और जैन-धर्म में बहुत सी बातें समानतः हैं, अतः दोनों एक हैं या जैन-धर्म बौद्ध धर्म की शाखा है। इस भ्रान्ति का सर्वथा निवारण डॉ. जैकोबी ने पुष्ट प्रमाणों से किया, जिससे यह भ्रान्ति सदा के लिए दूर हो गयी और धर्म का गौरव विश्व के सामने चाहे थोड़े रूप में ही हो, पर प्रतिष्ठित हो सका। जर्मन की ही एक विदुषी महिला ने तो भारत में आकर भारतीयता स्वीकार कर ली व अपना नाम भी सुभद्रादेवी रख लिया था। यहाँ की गुजराती, हिन्दी आदि भाषाओं पर अधिकार प्राप्त करके जैन-धर्म सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण लेख लिखे और कुछ वर्षों में ही बहुत अच्छा और ठोस काम किया। स्व. पूज्य विजयधर्म सूरिजी के साथ-साथ विजयेन्द्र सूरिजी और विद्याविजय जी आदि से उनका अच्छा सम्पर्क रहा। शिवपुरी के जैन विद्यालय में वे रहीं। फिर मध्य प्रदेश की शिक्षा विभाग में ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित हुईं। इधर काफी वर्षों से वे ग्वालियर में ही रहीं। जैन-समाज की उपेक्षा के कारण इधर के कुछ वर्षों में वह जैन-धर्म से सर्वथा उदासीन हो गईं और अन्त में, ईसाई व चर्च ( गिरजाघर ) की शरण ही लेनी पड़ी। अभी-अभी उनसे विशेष सम्पर्क रखने वाले श्री सूरजमल जी धाड़ीवाल, ग्वालियर के पत्र से ही विदित हुआ है कि मिस क्राउज़े उर्फ सुभद्रा बहन का निधन 28 जनवरी 80 को हो गया है। उन्होंने अपना ग्रन्थ भण्डारकर ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट पूना को दे दिया था और अन्य समस्त सम्पत्ति चर्च को दे दी थी। बड़े दुःख की बात है कि जैन-समाज ने उनकी कोई खोज-खबर तक नहीं ली। मेरे बड़े लड़के धर्मचन्द का विवाह ग्वालियर के श्री चुन्नीलाल जी पारेख की लड़की से हुआ था। अतः ग्वालियर जाने का मुझे कई बार मौका मिला। प्रथम बार जब मैं उनसे उनके बंगले पर मिलने गया और बहन जी के नाम से सम्बोधित किया तो वे बहुत खुश हुईं कि आज मेरा एक भाई मेरी खोज-खबर करने यहाँ आ पहुँचा है। जैन पत्र आदि में प्रकाशित उनके लेखों से तो मैं पहले से ही प्रभावित था और उन्होंने जैन-धर्म स्वीकार कर लिया है, यह भी मुझे मालूम था। उनसे मिलने पर ज्ञात हुआ कि वे जैन इतिहास पर शोध कर रहीं थीं, अतः मैने उस समय भी सभी जानकारी उन्हें दी तो वे बहुत ही प्रसन्न हुई। मुझे अपने यहाँ कुछ खाने का अनुरोध किया तो मैंने कहा कि मन्दिर के दर्शन किये बिना मैं मुंह में पानी तक नहीं डालता। वहाँ मेरे यह कहने के साथ-साथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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