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Ancient Jaina Hymns
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प्रणतसुरसुरेन्द्रं ध्वस्तसम्मोहनिद्रं
सुगुणमणिसमुद्रं यत्कषायारिरौद्रम् । नमत विहितभद्रं सत्त्वपीडादरिद्रं
कुमतकमलचन्द्रं शासनं जैनचन्द्रम् ।। 3 ।। जिनपतिनेतदक्षः प्लुष्टमिथ्यात्ववृक्षा
प्रणतविहितकक्षः स्मेरपद्मोपमाक्षः । नियतकुशलपक्षः सद्यशोभावलक्षः
प्रवचनकृतरक्षः सोऽस्तु सर्वानुयक्षः ।। 4 ।।
(8) श्रीसीमन्धरस्वामिस्तवनम् नमिर-सुर-असुर-नर-विन्द-वन्दिय-पयं
रयणिकर-कर-निकर-कित्तिभर-पूरियं । पञ्चसय-धणुह-परिमाण-परिमण्डियम्
थुणह भत्तीइ सीमन्धरं स्सामियं ।। 1 ।। मेरुगिरि-सिहरि धय-बन्धणं जो कुणइ
गयणि तारा गणइ वेलुआ-कण मिणइ । चरम-सायर-जले लहरि-माला मुणइ
___ सोवि नहु सामि तुह सव्वहा गुण थुणइ ।। 2 ।। तहवि जिण-नाह निय जम्म सफली-कए
विमल-सुह-झाण-सन्धाण-संसिद्धए । असुह-दल-कम्म-मल-पडल-निन्नासणं
तात करवाणि तुह सन्थवं बहुगुणं ।। 3 ।। मोह-भर-बहुल-जल-पूर-सम्पूरिए
विषय-घण-कम्म-वणराजि-संराजिए ।। भव-जलहि-मज्झि निवडन्त-जन्तू-कए
सामि सीमन्धरो पोअ जिम सोहए ।। 4 ।। तेअ-भर-भरिअ-दिसि-विदिसि-गयणङ्गणो
पबल-मिच्छत-तम-तिमिर-विद्धंसणो । भविअ-जण-कमल-वणसंड-बोहंकरो
सामि सीमन्धरो दिप्पए दिणयरो ।। 5 ।।
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