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________________ Jaina Sahitya aur Mahākāla-Mandira निवासियों को स्मरण है। सम्भव है कि उक्त 'कंथारवन' या 'कंथारकुडंग' एक समय श्री अवन्तिसुकुमाल के समाधिस्थान, अर्थात् गंधवती घाट के आसपास के प्रदेश से उत्तर में 'सती दरवाजे' तक या उससे और भी दूर तक एक-सा फैला हुआ था और कदाचित् आधुनिक 'कंठाल मुहल्ले' का नाम उसकी स्मृति का एक अवशेष हो । इसी विशाल ‘कंथारवन' अथवा 'कंथारकुडंग' में श्री अवन्तिसुकुमाल के समाधि-स्थान पर इस महात्मा का स्मारक मन्दिर बनाया गया था, ऐसा उपर्युल्लिखित साहित्य से विदित है । 251 उसी साहित्य से यह भी विदित है कि जिस समय श्री विक्रमादित्य और सिद्धसेन दिवाकर महाकाल वन में आए, उस समय यह स्मारक - मन्दिर हिन्दुओं के अधिकार में आकर एक हिन्दू मन्दिर बन गया था, जिसमें 'कुडंगेश्वर महादेव' का लिंग स्थापित किया गया था। इस 'कुडंगेश्वर' का सबसे प्राचीन उल्लेख 'मरणसमाहि-पइण्णं' में उपलब्ध है, जहाँ श्री अवन्तिसुकुमाल का मृत्युस्थान 'कुडंगीसरट्ठाणं' प्राकृत शब्द से वर्णित है ( देखिए पूर्वोक्त अवतरणिका )। इसके पश्चात् उक्त नाम ' कथावली' में पाया जाता है, जहाँ कि प्राकृत 'कुडंगेसर' साफ-साफ उस हिन्दू मन्दिर के लिए प्रयुक्त है जहाँ श्री विक्रमादित्य और सिद्धसेन का मिलाप हुआ । उसी मन्दिर के नामस्वरूप संस्कृत 'कुडंगेश्वर' उपर्युक्त 'विविध - तीर्थकल्प' की कुछ प्रतियों में, 'प्रभावक - चरित' में, 'प्रबन्ध - चिन्तामणि' में तथा 'कुडुंगेश्वर' 'विविध- तीर्थकल्प' की अन्य प्रतियों में उपलब्ध है। इन ग्रन्थों के अनुसार इसी कुडंगेश्वर महादेव के मन्दिर में अवन्तिसुकुमाल के समय की तीर्थङ्कर-प्रतिमा निकली और 'कुडंगेश्वर नाभेय' या हमारी कल्पना के अनुसार 'वामेय', आदि नामों से फिर जैनियों से पूजित हुई, जैसा कि पहिले व्यौरेवार बताया जा चुका है । अस्तु । उपर्युक्त कुल बातें जैन-ग्रन्थों ही के आधार पर कथित हैं। यदि उनके लिए अन्य साहित्य के भी कुछ प्रमाण दिये जा सकेंगे तो उनकी प्रामाणिकता अधिक मान्य समझी जा सकेगी। यह विशेषतः कुडंगेश्वर महादेव के अस्तित्व के विषय में उचित है, जो एक राज - पूजित हिन्दू-देवता बताया जाता है। इसका पता हिन्दू साहित्य से लगाने का प्रयत्न अब किया जायगा । ( 6 ) कुटुम्बेश्वर महादेव ‘विविध-तीर्थकल्प' के अन्तर्गत और पहले बारम्बार उल्लिखित 'कुडुंगेश्वरकल्प' में 'कुडुंगेश्वर' शब्द छः बार आया है। मुनि श्री जिनविजयजी ने इस शब्द के केवल 'कुडुंगेश्वर' और 'कुडंगेश्वर' ये ही दो पाठान्तर दिये हैं। परन्तु 'अभिधान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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