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________________ 252 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature राजेन्द्रकोश’ में ( ‘कुडुम्बेश्वर' शब्द के नीचे ) उक्त कल्प का जो रूप पाया जाता है उसमें उनके स्थान पर छः ही बार 'कुटुम्बेश्वर' यह पाठान्तर है । यद्यपि उक्त कोश के सम्पादक महाशय ने इस बात का स्पष्टीकरण नहीं किया है कि यह तीर्थकल्प कौन प्रति से उद्धृत किया गया है, तथापि अनुमान किया जा सकता है कि उनको ऐसी कोई प्रति हस्तगत हुई होगी जिसका उपयोग मुनिश्री अपने सम्पादन कार्य में न कर पाए होंगे। उक्त तीन रूपों में से ‘कुडुंगेश्वर' और 'कुडंगेश्वर' हिन्दू साहित्य में अब तक सर्वथा अप्रसिद्ध हैं, जबकि 'कुटुम्बेश्वर' शब्द 'स्कन्दपुराण' के 'अवन्तिखण्ड' में तीन भिन्न-भिन्न स्थानों पर नीचे के अनुसार उल्लिखित है : 1. 1.10, पद्य 1-10 ( वेंकटेश्वर प्रेस एडिशन, पृ० 14 ब ) : वहाँ कुटुम्बेश्वर महादेव के दर्शन का फल बताया जाता है। 2. 1.67, पद्य 1-25 ( पृ० 72 ब ) : वहाँ भक्तों के 'कुटुम्बी', अर्थात् बड़े परिवार युक्त हो जाने से 'कुटुम्बेश्वर' शब्द का व्युत्पत्त्यर्थ ( यौगिक अर्थ ) बताया और कुटुम्बेश्वर महादेव के मन्दिर का वर्णन किया जाता है। इसके अनुसार वहाँ एक चतुर्मुख लिंग, 'भद्रपीठधरा देवी भद्रकाली' अर्थात् 'सिंहासन पर विराजमान भद्रकाली देवी' तथा एक पाँव से लंगड़े भैरव क्षेत्रपाल विद्यमान थे । 3. 2.15, पद्य 1-41 ( पृ० 91 अ ) : वहाँ समुद्र मन्थन से लेकर उक्त लिंग के कल्पित इतिहास सहित ऐसी घटना का विस्तृत वर्णन है कि कामेश्वर - लिंग से उत्पन्न हुआ कुटुम्बेश्वर - लिंग, आरम्भ से एक विष लिंग और मृत्युदायक होकर महादेव के वरदान से और लकुलीश के उसमें अवतार लेने से वृद्धिकारक बन गया | कुटुम्बेश्वर महादेव का मन्दिर आज भी गन्धवती घाट के पास उज्जैन के उस भाग में विद्यमान है, जो सिंहपुरी नाम से प्रसिद्ध है । वह शिखर - युक्त, परन्तु छोटा है और उसका एक कमरा मात्र है । उसमें दरवाजे से लेकर सामने की दीवार तक एक पंक्ति में तीन लिंग स्थापित हैं, जिनमें से बीच का लिंग पुराण के वर्णन के अनुसार सचमुच चतुर्मुख है, अर्थात् उसे ही 'कुटुम्बेश्वर' समझना चाहिए । परन्तु पुराणोक्त 'भैरव क्षेत्रपाल' और 'भद्रपीठधरा भद्रकाली देवी' के नामनिशान तक नहीं दिखते हैं। दरवाजे के सामने की दीवार के पास गणपति के एक उभरे हुए चित्र से शोभित एक नीचा खम्भा और ऊपर झरोखे में चार हाथ वाली खड़ी हुई पार्वती का एक उभार-चित्र है, जो केवल थोड़े वर्ष पहले बनाया हुआ दिखता है। देवी के आगे के दोनों हाथों में लिंग योनि, पीछे के दाहिने हाथ में एक सुराही और पीछे के बाएँ हाथ में एक बिल्व-पत्र है । बाँईं दीवार के ऊपर के कोने में एक साढ़े पाँच फुट ऊँचा और डेढ़ फुट चौड़ा शिलापट्ट जड़ा हुआ है, जिस पर उत्कीर्ण छोटी मूर्तियाँ 'चौरासी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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