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________________ 244 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature 'प्रबन्ध-चिन्तामणि', 'प्रबन्धकोश', शुभशीलकृत 'विक्रम-चरित्र', तपाचार्य-कृत 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र-टीका' और 'विविध-तीर्थकल्प' में स्पष्ट कहा गया है कि श्री विक्रमादित्य उस अवसर पर श्रावकों के बारह व्रत अंगीकार कर जैन बन गए। संवत्सर प्रवर्तक विक्रमादित्य के श्री सिद्धसेन दिवाकर के उपदेश से जैन बनने के सम्बन्ध में श्वेताम्बरीय 'गुरु पट्टावलियों' आदि सदृश ग्रन्थों में भी स्पष्ट उल्लेख पाए जाते हैं। इतना ही नहीं, सुतराँ श्री विक्रमादित्य द्वारा श्री सिद्धसेन दिवाकर के उपदेश से कराए गए जैन तीर्थों के जीर्णोद्धार, यात्रा, मन्दिर एवं मूर्तिप्रतिष्ठा आदि धार्मिक कार्यों के विस्तृत वर्णन श्री रत्नशेखर सूरि कृत विधिकौमुदी20 (ई. सन् 1450 ) और उसके पश्चात् 'अष्टाह्निका-व्याख्यान'21 (ई. सन् 1814 ) आदि ग्रन्थों में भी मिलते हैं, जिनमें श्री विक्रमादित्य एक आदर्श जैन राजा के उदाहरण-रूप वर्णित हैं। श्री धर्मघोषसूरि कृत 'शत्रुञ्जय-लघु-कल्प' (ईसा की तेरहवीं शताब्दी) में विक्रम का नाम शत्रुञ्जयतीर्थ का जीर्णोद्धार कराने वाले महाविभूतियों की नामावली के अन्तर्गत है। यथा : संपइ-विक्कम-बाहड-हाल-पलित्त-आम-दत्तरायाइ । जं उद्धरिहंति तयं सिरि सत्तुंजय-महातित्थं ।। 29 ।। अर्थात् “वह महातीर्थ शत्रुञ्जय ( जयवन्त हो ) जिसका जीर्णोद्धार करने वाले सम्प्रति, विक्रम, बाहड़, हाल, पादलिप्त, आम दत्तराजा ( आदि हुए हैं और ) होंगे ।। 29 ।।" वहुशंकित 'ज्योतिर्विदाभरण'23 ( 22-9 ) में भी संवत्सर-प्रवर्तक विक्रमादित्य का सम्बन्ध श्री सिद्धसेन दिवाकर के साथ उल्लिखित है, यदि मूल-ग्रन्थ का 'श्रुतसेन' (टीकाकार श्री भावरत्न के मतानुसार ) सचमुच सिद्धसेन का नामान्तर है। प्रस्तुत अवसर पर इस जैनहितैषी या तो जैन ही बने हुए विक्रमादित्य ने शिवलिंग से प्रादुर्भूत हुई प्रतिमा की पुनः प्रतिष्ठा कराई और इस मूर्ति की सेवा-पूजादि के लिये उदारतापूर्वक प्रबन्ध किया, वह पूर्वोक्त चमत्कार के दूसरे परिणाम-स्वरूप कथित है। यथा : 1. श्री शुभशील-कृत 'विक्रमादित्यचरित्र' (7; 55-56 ) के अनुसार : महंकालाभिधे चैत्ये बिम्बं पार्श्वजिनेशितुः । भूपतिः स्थापयामास पूजायामास चादरात् ।। देवपूजाकृते ग्राम सहस्रं नृपतिर्ददौ । अर्थात् “महंकाल नाम के मन्दिर में राजा ने पार्श्वनाथ तीर्थङ्कर का बिम्ब स्थापित किया और आदर से उसकी पूजा की। देवपूजा के लिए नृपति ने हजार ग्राम दिए।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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