SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jaina Sāhitya aur Mahākāla-Mandira 245 2. 'प्रबन्ध-कोश' (पृ. 19 ) के अनुसार : तच्छ्रवणान्नृपः शासने ग्रामशतान्यदत्त देवाय। अर्थात् “यह सुनकर राजा ने शासन द्वारा देव को सैकड़ों ग्राम दिए।" 3. 'उपदेश-प्रासाद' (पृ. 61 ) के अनुसार : एवं निशम्य तत्पूजार्थ ग्रामशतान्यदत्त विक्रमाक्रः। अर्थात् “ऐसा सुनकर विक्रमार्क ने उसकी पूजा के लिए सैकड़ों ग्राम दिए।" 4. विशेष महत्त्वपूर्ण श्री जिनप्रभ सूरि कृत 'विविध-तीर्थकल्प' (पृ. 89) का निम्नलिखित उल्लेख जान पड़ता है : ____ ततश्च गो-हदमण्डले च साम्बद्राप्रभृतिग्रामाणामेकनवति, चित्रकूटमण्डले वसाडप्रभृतिग्रामाणां चतुरशीति, तथा घुण्टारसीप्रभृतिग्रामाणां चतुर्विंशतिं, मोहडवासकमण्डले ईसरोडाप्रभृतिग्रामाणां षट्पञ्चाशतं श्रीकुडुंगेश्वर-ऋषभदेवाय शासनेन स्वनिः श्रेयसार्थमदात्। ततः शासनपट्टिकां 'श्रीमदुज्जयिन्यां, संवत् 1, चैत्र सुदी 1, गुरौ, भाटदेशीय महाक्षपटलिक-परमार्हतश्वेताम्बरोपासकब्राह्मणगौतमसुतकात्यायनेन राजाऽलेखयत्। अर्थात् “तत्पश्चात् ( राजा ने ) अपने आत्मकल्याण के लिए कुडुंगेश्वर ऋषभदेव को शासन द्वारा गोहृदमंडल में साम्बद्रा आदि 91 ग्राम, चित्रकूट-मंडल में वसाड आदि 84 ग्राम तथा घुण्टारसी आदि 24 ग्राम और मोहडवासक मंडल में ईसरोडा आदि 56 ग्राम प्रदान किए। पश्चात् राजा ने शासनपट्टिका ( ग्राण्ट ) उज्जैन में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा संवत् 1 गुरुवार को भाट देश निवासी महाक्षपटलिक ( रेकोर्ड के अध्यक्ष ) परम-श्रावक, श्वेताम्बर-मत के अनुयायी ब्राह्मण गौतम-पुत्र कात्यायन द्वारा लिखवाई।" उपर्युक्त स्थानों तथा प्रदेशों के नामों में से चित्रकूट, वसाड और घुटारसी की कुछ चर्चा आगे की जायेगी। गो-हद कदाचित् गोध्रा और भाट देश जैसलमेर के आसपास का प्रदेश होगा ( देखिए 'पृथ्वीचन्द्र चरित्र', गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज़ 13, पृ. 94 तथा टॉड, 'राजस्थान'1, पृ. 42 और 95 ), इतना ही अनुमान किया जा सकता है। तथापि इन और शेष नामों के सम्बन्ध में खोज की आवश्यकता है। शासनपट्टिका लिखाने वाले राजा को 'श्री विक्रमादित्यदेवः' कहा जाता है और उनका निम्नलिखित विशेषण दिया जाता है : सर्वत्रानृणीकृतविश्वं विश्वम्भराङ्कितनिजैकवत्सरः। अर्थात् "जिसका एक ही निजी संवत्सर (चालू है जो) समस्त पृथ्वी को सर्वत्र ऋणरहित करने के कार्य से अंकित है।" इसका तात्पर्य यही हो सकता है कि श्री जिनप्रभु सूरि के मतानुसार 'संवत्सर प्रवर्तक' विक्रमादित्य ने, श्री सिद्धसेन दिवाकर द्वारा प्रतिबोधित होकर अपने निजी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy