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________________ 238 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature कि 'महाकालान्तर-पातालचक्रवर्ती' इस नाम से श्री जिनप्रभ सूरि के ई. सन् 1333 में रचे हुए विविधतीर्थकल्प' में उल्लिखित है, जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है। कदाचित् वह 'पातालचक्रवर्ती' श्री अवन्तिसुकुमाल के मन्दिर की मूलनायक-प्रतिमा ही थी, क्योंकि दोनों प्रतिमाएँ श्रीपार्श्वनाथ ही की थीं। जब अवन्तिसुकुमाल का मन्दिर ( आगे आने वाले विवरण के अनुसार ) दूसरी बार अन्यधर्मियों से ग्रहण किया गया था, उस समय वहाँ की उस मूलनायक-प्रतिमा को एक भिन्न जिनालय में स्थापित किया गया होगा। वह मन्दिर भी पूर्वोक्त अमांगलिक प्रसंग पर नष्ट हो गया होगा, जिससे कि उसके मूलनायक को भी ( महाकाल के सदृश ) भूमिगृहरूपी 'पाताल' ही में शरण लेनी पड़ी होगी। इतने विवेचन के अनन्तर अब श्री अवन्तिसुकुमाल के वृत्तान्त के शेष साहित्य का अवलोकन करना पड़ रहा है। उसमें पहले 'प्रबन्ध-कोश' ( ई. सन् 1351 ) का क्रम आता है। इसमें उक्त वृत्तान्त संस्कृत गद्य में ऐसे रूप में कथित है जो कि श्री हेमचन्द्र सूरि की कहानी से मिलता है। अन्त में अवन्तिसुकुमाल के पुत्र ने. प्रासादः कारितः। मम पितुर्महाकालोऽत्राभूदिति महाकालनाम दत्तम्। श्रीपार्श्वनाथबिम्बं मध्ये स्थापितम्। कत्यायहानि लोकेन पूजितम्। अवसरे द्विजैस्तदन्तरितं कृत्वा मृडलिंगमिदं स्थापितम्। अर्थात् “एक मन्दिर बनवाया। मेरे पिता का 'महान् काल' ( अर्थात् महान् मृत्यु ) यहाँ हुआ। इस कारण से 'महाकाल' नाम दिया। बीच में श्रीपार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की। उसकी पूजा लोगों ने कुछ दिन तक की। अवसर पाकर ब्राह्मणों ने उसे छिपा दिया और यह शिव-लिंग स्थापित किया।" श्री शंभशीलगणि कृत 'विक्रमचरित्र' (ई. सन् 1443 या 1434 ) में अवन्तिसुकुमाल की अन्तर्कथा संस्कृत पद्य में और उसी कवि-रचित 'श्री भरतेश्वरबाहुबलि-वृत्ति' (ई. सन् 1453 ) में उसकी स्वतन्त्र कहानी संस्कृत गद्य में दी गई है। यहाँ की और पूर्वोक्त कहानी में इतनी ही भिन्नता है कि अवन्तिसुकुमाल की माता 'भद्रा' के अतिरिक्त उनके पिता 'भद्र श्रेष्ठी' भी उल्लिखित हैं। "विक्रमचरित्र' के अनुसार : तस्मिन् स्थाने महच्चैत्यं पार्श्वनाथजिनेशितुः । मनोज्ञं कारयामास भद्रश्रेष्ठी धनव्ययात् ।। 39 ।। तस्याऽजनि महंकालनामेति विश्रुतं भुवि । कालक्रमाद् द्विजलिंगं स्थापितं पार्वतीपतेः ।। 40 ।। अर्थात् “उस स्थान पर भद्र सेठ ने, बहुत धन खर्च करके, श्रीपार्श्वनाथ जिनेश्वर का एक विशाल मनोहर मन्दिर बनवाया ।। 30 ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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