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________________ Jaina Sahitya aur Mahākāla-Mandira उसका जगद् विख्यात नाम महाकाल हो गया। कालक्रम से वहाँ ब्राह्मणों ने पार्वतीपति का लिंग स्थापित किया ।। 40 ।। ” 239 श्री विजयलक्ष्मी सूरि कृत 'उपदेशप्रासाद' ( ई. सन् 1787 ) में आई हुई अवन्तिसुकुमाल कथा संस्कृत पद्य में और 'प्रबन्ध-कोश' के अनुसार है। इनके अतिरिक्त श्री धर्मसमुद्र वाचक " ( ई. सन् 1520 के आसपास ) और प्रसिद्ध गुर्जर जैन कवि श्री जिनहर्ष सूरि तथा श्री ज्ञानविमल सूरि17 ( ई. सन् 1770 के आसपास) कृत गुजराती 'सज्झायो' ( अर्थात् धर्मभावना - पोषक, 'स्वाध्याय' के योग्य छोटे गेय काव्य ) आदि कृतियों में प्राचीन मूलग्रन्थों के आधार पर अवन्तिसुकुमाल और बहुधा उनके समाधि-मन्दिर का भी वृत्तान्त वर्णित है। आधुनिक जैन भक्त कवि मुनि श्री चौथमलजी महाराज ने भी एक 'अवन्ति - सुकुमाल - सज्झाय' हिन्दी में रची है, जो मुनियों से गाई हुई सुनी जा सकती है। ( 3 ) दिगम्बर साहित्य में अवन्तिसुकुमाल दिगम्बर साहित्य में अवन्तिसुकुमाल के वृत्तान्त का सबसे प्राचीन उल्लेख श्री शिवार्य कृत 'भगवती आराधना' में उपलब्ध है, जो कि श्री ए. एन. उपाध्ये महाशय के मतानुसार ( हरिषेण, 'बृहत्कथाकोश' 18, भूमिका, पृ. 54 ) जिनसेन के 'आदिपुराण' से अधिक प्राचीन है, अर्थात् ईस्वी की नवमी शताब्दी के पूर्व में रचित है । वहाँ उक्त उल्लेख उस प्राकृत गाथा में विद्यमान है, जो ऊपर श्वेताम्बरीय ( भत्तपरिण्णा पइण्णं' में से कुछ पाठान्तर के साथ उद्धृत की जा चुकी है। 'भगवती आराधना' में निम्नलिखित रूप में है (गाथा नं. 1539, पूर्वोक्त भूमिका, पृ. 78 के अनुसार ) : भल्लुंकीए तिरत्तं खज्जंतो घोरवेदणट्ठो वि । आराधणं पवण्णो झणेणावंतिसुकुमालो ।। अर्थात् " तीन रात पर्यन्त स्यारनी से भक्षित और घोर वेदना से पीड़ित होते हुए भी अवन्तिसुकुमाल ने ध्यान में मग्न रहकर आराधना की । ” वास्तव में ऐसी गाथाएँ श्री उपाध्ये के कथनानुसार ( उक्त भूमिका, पृ॰ 54 ) उस अति प्राचीन समय के साहित्य के अवशेष हैं जब जैन समुदाय और जैन साहित्य दिगम्बर और श्वेताम्बर शाखाओं में विभक्त नहीं हुआ था अर्थात् उनको न तो श्वेताम्बरीय और न दिगम्बरीय ही, किन्तु सामान्य आदि - जैन- साहित्य गिनना समीचीन है । पूर्वोक्त भूमिका से अवन्तिसुकुमाल की कहानी का कुछ विवरण दिया गया है, तथापि उसकी एक लुप्त प्राकृत टीका में ऐसी कहानियों का संग्रह अवश्य विद्यमान था जो पश्चात् के दिगम्बरीय कथा - साहित्य का मुख्य आधार बन गया है। (पृ. 58 ) इस कथा - साहित्य का एक प्रसिद्ध ग्रन्थ श्री हरिषेण कृत 'बृहत्कथाकोश' है, जिसका रचनाकाल कवि ने स्वयं ई. सन् 932 दिया है। यह ग्रन्थ संस्कृत पद्य 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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