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________________ 232 Dr. Charlotte Krause : Her Life & Literature दिगम्बर साहित्य में भी 'श्रीकल्याणमन्दिरस्तोत्र' का पाठ होने से श्रीपार्श्वनाथ ही के बिम्ब का प्रगट होना कथित है। ऐसा उल्लेख श्री अचलकीर्तिकृत 'विषापहारस्तोत्र भाषा' ( जहाँ श्री विक्रम राजा का भी नाम इस सम्बन्ध में दिया गया है ), 'कल्याणमन्दिरस्तोत्र भाषा' में और वृन्दावन कवि कृत 'मंगलाष्टक' आदि में मिलता यदि उपर्युक्त कुछ ग्रंथों में इस पार्श्वनाथ प्रतिमा के प्रादुर्भुत होने में पार्श्वनाथस्तुति-रूप कल्याणमन्दिरस्तोत्र के अतिरिक्त महावीर-स्तुति-रूप 'द्वात्रिंशिकाओं' का पाठ भी निमित्तभूत कथित है, तो वह इस कारण से अबाधित है कि जैन रीति के अनुसार किसी भी एक तीर्थङ्कर की स्तुति, पूजा आदि में बहुधा शेष तीर्थङ्करों की आराधना भी अन्तर्भूत समझी जाती है। उक्त कविताएँ, विशेषतः प्रस्तुत प्रसंग पर उचित ही ज्ञात होती हैं, क्योंकि इनमे कथित तीर्थङ्कर-स्तुति एक साथ परमात्मा रूपी महादेव के प्रति भी मानी जा सकती है। जैसा कि पहली द्वात्रिंशिका के पहिले पद्य के निम्नलिखित शब्दों से विदित है : स्वयंभुवं भूतसहस्रनेत्रमनेकमेकाक्षरभावलिंगम्। आज भी "स्वयंभू' शब्द विशेषतः महाकालेश्वर-लिंग का एक प्रचलित विशेषण है। इस स्तोत्रपाठ के चमत्कारिक प्रभाव से आश्चर्यान्वित विक्रमादित्य को अब सिद्धसेन प्रतिबोध देने और उस प्रादुर्भूत हुए जिन-बिम्ब का पूर्व इतिहास सुनाने लगे, जो कि अवन्तिसुकुमाल मुनि के वृत्तान्त के साथ ग्रथित है। वह एक विस्तृत अन्तर्कथा के रूप में 'प्रबन्धकोश', शुभशीलकृत 'विक्रमचरित्र' और 'उपदेशप्रासाद' में, तथा अति संक्षिप्त रूप में 'पुरातनप्रबन्धसंग्रह' और प्रबन्धचिन्तामणि' (आदर्श डी) में दिया हुआ है। शेष ग्रन्थों में वह नहीं पाया जाता है परन्तु उनसे अधिक प्राचीन ग्रन्थों में इसका इतिवृत्त स्वतन्त्र रूप में उपलब्ध है। उस इतिवृत्त पर अब दृष्टि डालना आवश्यक है। (2) श्वेताम्बर साहित्य में अवन्तिसुकुमाल-स्मारक अवन्तिसुकुमाल का वृत्तान्त अति प्राचीन है। वह दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रसिद्ध है। इसका आधार जैन-इतिहास की कोई सत्य घटना होगी, ऐसा मानने में तनिक भी संकोच की आवश्यकता नहीं है। प्राचीन अवन्ति नगरी में एक श्रीमन्त-पुत्र को किसी जैन मुनि का व्याख्यान सुनने से प्रबल वैराग्य का उत्पन्न होना, मुनिवेश ग्रहण करके दीक्षित होना, महाकालवन की श्मशान-भूमि की एकान्तता में आहार-निद्रा आदि का त्याग करके कुछ दिन तक अचल धर्मध्यान में मग्न रहना और इसी अवस्था में एक बुभुक्षित स्यारनी और उसके सन्तान से भक्षित होना, ऐसी घटना-श्रृंखला को असम्भव कौन कह सकता है? जो दृढ़ श्रद्धा और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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