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________________ Jaina Sãhitya aur Mahākāla-Mandira 233 अचल वैराग्य अवन्तिसुकुमाल को अपने घर की अगणित लक्ष्मी और स्वर्गसदृश सुख छोड़कर अपने जीवन का उत्तमार्थ समाधीकरण ही में पाने को प्रेरित करता है, वह अपूर्व नहीं है। राजाओं ने भी अपने सिंहासन छोड़कर सल्लेखना मृत्यु ही में अपना कल्याण माना, ऐसे दृष्टान्त श्री एस. आर. शर्मा कृत 'जैनिज्म एण्ड कर्णाटक कल्चर' और श्री बी. ए. सालेतोर कृत 'मेडिवल जैनिज्म' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थों में पाए जाते हैं। भूतकाल तो दूर रहा, आज भी ऐसी ही श्रद्धा और ऐसे ही वैराग्य से प्रेरित कई लक्ष्मीपति और उनकी सुकुमार महिलाएं अपना सुख और वैभव छोड़कर दुष्कर तपस्या करती हुई प्रत्यक्ष देखी जाती हैं। अवन्तिसुकुमाल के सबसे पुराने उल्लेख श्वेताम्बर आगम के अन्तर्गत 'भत्तपरिण्णा', 'संथारयपइण्णं' और 'मरणसमाहि' नामक तीन 'पइण्णों' ( अर्थात् 'प्रकीर्णक' नामक ग्रन्थ-विशेष ) में, समाधिमरण के एक विशेष भेद के दृष्टान्त स्वरूप मिलते हैं। श्वेताम्बर आगम की अन्तिम आकृति श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण ने वलभी नगर में वीरनिर्वाण से 980 वर्ष के पश्चात् (या एक दूसरे मत के अनुसार 993 वर्ष के पश्चात् ), अर्थात् ईसवी सन् 453 के आसपास अत्यन्त प्राचीन मूल.ग्रन्थों के आधार पर सम्पादित की, ऐसा माना जाता है। . 'भत्तपरिण्णा पइण्ण' 10 का उल्लेख निम्नलिखित है : भालुंकीए करुणं खज्जतो घोर विअणत्तोवि । आराहणं पवनो झाणेण अवंतिसुकुमालो ।। 160 ।। अर्थात् “स्यारनी द्वारा करुणाजनक रीति से भक्षित होते हुए और घोर वेदना से पीड़ित होते हुए भी अवन्तिसुकुमाल ने ध्यानस्थ अवस्था में आराधना की ।। 160 ।। यही पद्य थोड़े पाठान्तर सहित दिगम्बरीय 'भगवती आराधना' और 'कण्णड वड्डाराधना' में भी उपलब्ध है, जैसा कि श्री ए. एन. उपाध्ये महाशय ने हरिषेण कृत 'वृहत्कथा-कोश' की प्रस्तावना ( पृ. 78 ) में बताया है। इससे प्रस्तुत वृत्तान्त की प्राचीनता भलीभाँति ज्ञात होती है।। 'संथारय पइण्णं' में उज्जैन के श्मशान का उल्लेख इस सम्बन्ध में दिया गया है। महात्मा का नाम 'अवन्ति' मात्र है। यथा : उज्जेणी नयरीए अवंतिनामेण विस्सुओ आसी । पाओवगमनिवत्रो सुसाणमज्झम्मि एगंतो ।। 65 ।। तिनिरयणीइ खइओ भल्लुंकी रुट्टिया विकटुंती । सोवि तह खज्जमाणो पडिवत्रो उत्तमं अटुं ।। 66 ।। अर्थात् “उज्जैन नगरी में अवन्ति नाम का विख्यात ( पुरुष ) था। उन्होंने श्मशान में एकान्त में पाओवगमन् ( नाम का समाधिमरण) अंगीकार किया ।। 65 ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001785
Book TitleCharlotte Krause her Life and Literature
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreeprakash Pandey
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages674
LanguageEnglish, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_English, Biography, & Articles
File Size11 MB
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