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________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ७४ लेख संसार का अन्तरंग प्रदेश मंगलकलश कथा नई पीढी और धर्म अभव्यजीव नवग्रैवेयक तक कैसे जाता है ? विद्याविलासरास आचार्य वादिराजसूरि पं० रामचन्द्रगणिरचित सुमुखनृपति काव्य Some Important Prakrit Work मानवमूल्यों का काव्य भविसयत्तकहा प्राकृत का अध्ययन श्रवणबेलगोला के शिलालेख, दक्षिणभारत में और गोम्मटेश्वर जैनधर्म महावीर का वीरत्व श्री बालाभाई वीरचन्द देसाई 'जयभिक्खू' भारतीय वाङ्गमय में प्राकृतभाषा का महत्त्व कवि रत्नाकर और रत्नाकरशतक अभय कुमार श्रेणिकरास (क्रमश:) दसधर्म योग साधना है श्रमण : अतीत के झरोखे में लेखक श्री गोपीचन्द धाड़ीवाल श्री भंवरलाल नाहटा श्री नन्दलाल मारु श्री कस्तूरमल बांठिया श्री सनत्कुमार रंगाटिया डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव श्री अगरचन्द नाहटा Dr. M. L. Mehta डॉ० देवेन्द्र कुमार डॉ० सुनीति कुमार चाटुर्ज्या श्री गणेश प्रसाद जैन डॉ० भानीराम वर्मा श्री कस्तूरमल बांठिया पं० बेचरदास दोशी डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव डॉ० श्रीसनत्कुमार रंगाटिया श्री अर्हसबंडोबा दि वर्ष १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ १९ अंक ७ ७ ८ ८ ८ ८ ९ ९ १० १० १० १० ई० सन् १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ १९६८ पृष्ठ २३-२५ २६-३४ ३५-३८ ७-११ १२-२५ २६-२९ ३०-३१ ३२-३९ ५-९ १०-१२ १३-२१ २२-२७ २८-३७ ६-१६ १७-२४ २५-३० ३१-३६
SR No.001784
Book TitleShraman Atit ke Zarokhe me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad, Vijay K Jain, Sudha Jain, Asim Mishra
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Articles
File Size17 MB
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