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छे. किणही आचायें कठे पण कियो नहि. दो आठमी के दो चउदसी - पजूस मां दो पांचम करणी (ज्यारे पुनमनो क्षय होय त्यारे चउदसनो क्षय कराय खरी, पण चउदस पर्वतिथि होवाथी तेनो क्षय न थाय, तेथीज तेरसनो क्षय अमे करीए छीए. अने ज्यारे पुनमनी वृद्धि होय त्यारे वे पुनम करवी, तेमां जे पहेली पुनमनी जे घडिओ विगेरेनो वधारो छे ते चउदशमां नखनाथी चउदशनी घडिओ वधी जवाथी बे तेरसो करवी ते व्याजवी छे, पण पर्वतिथि तो न घंटे के न बे थाय, एम तो तमाम गच्छवाला मानेज छे, एक न मानतो हो तो तमो जाणो) ओर दोइ सातम दो तेरसां ओर दो चउथीकरणेको ठेर ठेर कीयो है । तेण अम्हे पोसहि लेवां, आठ घटती तुमइ कल्याणक पोसहरा दिन छोडी जे सातममांहे पोसह करे छे । तिनइ घणां वाकपडे छे । आगइ पाछे जुडता नथी, तित्र मूलादि किठड़ ईठा मनाबड़ । तपा मास तथा तिथि वधइ तिवारइ पाछला लेबइ, खरतर पहिलि लेबइ, कठेइ पाछली पणि लेबइ, आपणा दाय आवे तिम करइ, तेणई आगेपाछे न जुडइ, श्रीतत्त्वारथ भाषमां कह्यो मास तथा तिथि वधइ ते वाछली लीज तिण मेळी तिम्हीज लेबइ छइ ॥ ५६ ॥
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नां. १०
આ જીની પ્રત ૫. લાવિજયજી પાસે છે. ૫૦ મેરૂવિજયજીની વખતે લખાયેલી તપ અને ખરતરના સંવાદની પ્રતમાં આ નીચેના પાઠ છે.
खरतर एम कहे छे के चउदस घंटे पुन्निमा पर्वतिथि छे तेथी पुन्निमाए पोसह करियो तपा चउद्दस घंटे तेरस संपूर्ण घटाडीने चउद्दस खडी राखणी, पोसह आदि सब क्रिया चउद्दसे करणी || ओर उसी बधे तब पहेली चउद्दसकी दुसरी तेरस करणी, उसिदिन तेरसकी क्रिया करणी ओर चउद्दसी खडी रखकर उसिदिन पोसह सब क्रिया करे ।। इसितरे पर्युषणा की पंचमी वघे तब दो बोध करके दूसरी चोथे संवत्सरीकी क्रिया करे, बांहपर सूर्योदयवेलाकी जरुरज नही, पहेली चथी सूर्योदय ते तावती संपूर्ण होय तो पण उसिको सामान्य तिथिरूप गिनी. क्युंके पंचमी आगे वोही चोथ हे इसिकारण से शास्त्रमें भी किया है पंचमीकी अगाउ एक दिन होवे तव संवत्सरीमतिक्रमणादि करना.
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