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पर्वतिथिक्षयवृद्धिप्रश्नोत्तर विचार
कृत्य करवानु अने तेना बीजे दिवसे अमावास्या के पूर्णिमानी आराधना करवान जणावे छे तेथी ज अमावास्या के पूर्णिमानी वृद्धिए बे तेरश करवामां आवे छे जो अमावास्या के पूर्णिमानी वृद्धिमां पंचांगनी औदयिक चतुर्दशीए पाक्षिकनी आराधना करीए अने बोजी अमा. वास्या के पूर्णिमाए ते अमावास्या के पूर्णिमा पर्वतिथिनो आराधना करवामां आवे तो चतुर्दशी अने अमावास्या के पूर्णिमा प्रधानपर्वतिथिनी आराधनानुं अनंतरपणु रहेतुं नको. पर्वतिधिनी वृद्धि मानवाची उत्सूत्रपणानो दोष तेमज बे पर्व कहीने एक पर्वनी आराधना करवाथी यथावादीपणु पण रहेतुं नथी; एटला माटेज अमावास्या के पूर्णिमानी वृद्धिमां पंचांगनी औदयिक चतुर्दशीने बीजी तेरशरुप गणी प्रथम अमावास्या के पूर्णिमाना दिवसे लोकोत्तर औयिक चतुर्दशी स्थापीने पाक्षिक कृत्य करवामां आवे छे.
आराधना
प्र० १०-पर्वतिथिनो क्षय माननार पर्वतिथिनी करे के अपर्वनी
उ०-पर्वतिथिनो क्षय माननार आराधना नियमा अपर्वनोज करे छे, पण पर्वनी नहि, शास्त्रमा आराधना पर्वनी कहेल छे अपर्वनी नहीं जैनतरो पण आराधनामां पर्वतिथिनी क्षय के वृद्धि मानता नथी गोकल आठमको क्षय होय तो सातमना दिवसे गोकलआठम मानशे नोमना दिवसे नहीं. उमास्वातिनो प्रोष पण पर्वतिथिनी क्षय के
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