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________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ ७३ रश्मियों के परिवर्तन की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। इसलिये ये प्रकाश में आते ही झिलमिलाने लगते हैं। कई रत्नों में स्वयं की आभा होती है और वे रात में चमकते हैं। सभी रत्नों का अपना रूप रंग होता है जो प्रकाश के सम्पर्क में आने पर द्विगुणित हो जाता है। तराशने पर यह और सुन्दर हो जाते हैं। सघन घनत्व तथा चिकनेपन के कारण जलवायु का इन रत्नों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता और ये लम्बे समय तक ज्यों के त्यों रहते हैं। नवरल-सामान्य दृष्टि से देखा जाये तो रत्नों की श्रृंखला बहुत विशाल है। जिसमें भारतीय मतानुसार चौरासी रत्न और हजारों की संख्या में उपरत्न हैं। लेकिन नवरत्न की महिमा अलग है। माणिक्य, हीरा, पुखराज, मोती, नीलम, पन्ना, मूंगा, गोमेद तथा वैदूर्य (लहसुनिया) ही नवरत्नों की श्रेणी में आते हैं। इन नौ रत्नों को सौरमण्डल के नौ ग्रहों का प्रतिनिधि माना गया है। यही कारण है कि इनको विधिवत धारण करने से फल की प्राप्ति शीघ्र होती भारतीय उपरत्न नवरत्नों के समान ही रंग-रूप और आकृति लेकिन घनत्व तथा गुणदोष में न्यूनाधिक उपरत्न भी आधुनिक खनिज और भूगर्भशास्त्रियों ने खोज निकाले हैं। आजकल कृत्रिम रत्न भी प्रयोगशालाओं में बनाये जाते हैं। परन्तु ऐसे रत्न जो उपरत्न कहलाते हैं वे वास्तव में खनिज, जैविक तथा वनस्पति ही है। वैक्रान्त, सूर्यकान्त, लाजवर्द, चन्द्रकान्त, फिरोजा आदि खनिज तथा शुक्ति, शंख, प्राणि और कहरुवा जैसे वनस्पति रत्न अपने गुण प्रभाव के कारण उपरत्नों की श्रेणी में गिने जाते हैं। इनका उपयोग भी रत्नों की तरह धारण करने और औषधि के रूप में सेवन करने में किया जाता है। खनिजशास्त्रीयों ने भारत सहित अन्य देशों ने काफी खोजबीन और गहन अनुसन्धान के द्वारा उपरत्नों की खोज की। भारतीय उपरत्नों के निम्नलिखित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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