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रत्नों के भेद
रत्न शब्द का अभिप्राय-रत्न शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ के अर्थ में किया जाता है । जो भी पदार्थ अपने वर्ग में श्रेष्ठ हो उसे रत्न की संज्ञा दी जाती है ।
'रत्न' एवं 'मणि' शब्द का प्रयोग पत्थर तथा मोती आदि के लिये किया जाता है। वस्तुतः मोती भी रत्न की श्रेणी में आता है । परन्तु इसकी उत्पत्ति और आकृति तथा घनत्व भिन्नता के कारण वह रत्न न होकर भी भिन्न नाम से जाना जाता है ।
अंग्रेजी में रत्नों को प्रीशियस स्टोन या बहुमूल्य रत्न और उपरत्नों को सेमी प्रीशियस स्टोन यानी अल्पमोली रत्न कहा जाता है। और ये प्रशंसनीयता ही रत्नों की श्रेष्ठता का पर्याय है ।
रत्नों के प्रकार और भेद - रत्नों की उत्पत्ति, प्राप्ति स्थान और देशान्तर की भिन्नता के कारण इनको तीन भागों में बाँटा गया है
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१. पाषाण रत्न : चट्टानों तथा शिलाखण्डों एवं नदियों के तल से प्राप्त रत्न, जैसे हीरा, माणिक्य, नीलम अकीक आदि ।
२. प्राणि रत्न : मूँगा तथा मोती जैसे कुछ रत्न जिनकी उत्पत्ति जीवों या प्राणियों द्वारा की जाती है ।
३. वनस्पति रत्न : इस वर्ग में कहरुवा जैसे अश्मी भूत रत्न आते हैं । प्राकृतिक रत्नों के विशेष गुण – उपरोक्त तीनों प्रकार के रत्नों में विशेषकर खनिज वर्ग के रत्न कठोर, चिकने और चमकदार होते हैं । प्रकाश
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