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________________ रत्नों की उत्पत्ति के आधार पर रत्न धारण अग्निपुराण में वर्णित है कि दधीचि की अस्थियों से जब अस्त्र निर्माण किया गया तब जो छोटा भाग जमीन पर गिरा उनसे चार खदानें हीरे की उत्पन्न हुई। इसी प्रकार कुछ पुराणों में कहना है कि मन्दराचल द्वारा समुद्रमन्थन से जो अमृत उत्पन्न हुआ, उसकी जो बूंदें जमीन पर गिरीं वह सूर्य किरणों द्वारा सूखकर यथाप्रकृति रेत के कणों में मिलकर पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के रत्न उत्पन्न हो गये। एक पुराण कथाकार का कहना है कि बलनामक एक दैत्य था, उसने देवताओं को हरा दिया, परन्तु देवताओं ने बुद्धिमत्ता से काम लिया उन्होंने उसे पशु रूप धारण करने को कहा, वह दैत्य खुश हो पशु रूप में परिवर्तित हो गया, तब देवताओं ने धोखे से उसका वध कर दिया। उसके शरीर के विभिन्न टुकड़े पृथ्वी पर गिर गये। इस प्रकार विभिन्न प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति हुई। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि बल दैत्य की हड्डियाँ जिस स्थान पर गिरी या जिस प्रदेश व पहाड़ों पर गिरी उन स्थानों पर इन्द्रधनुष जैसी चकाचौंध कर देने वाली हीरे की खानें हो गयीं। __उस असुर की दन्त पंक्तियाँ जो सारे ब्रह्माण्ड में फैल गयी थीं, समुद्रादि स्थानों में गिर कर सीपियाँ के रूप में परिवर्तित हो गयीं। वैसे तो मोती निम्न जानवरों की अस्थियों द्वारा निर्मित होता है परन्तु सीप का मोती सबसे सच्चा मोती माना गया है। इसका अधिक महत्त्व है। पद्मराग माणिक्य-बल दैत्य का रक्त सूर्य की किरणों से शोभित होकर आकाश मार्ग में घूम रहा था कि रावण ने उसकी राह रोककर उसे सिंहलद्वीप की नदी में गिरने को विवश किया, जिस नदी के किनारे सुपारी के पेड़ हैं । तत्पश्चात और उसमें पद्मराग माणिक्य उत्पन्न होने लगे तभी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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