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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान *
उसे नदी का नाम रावण-गंगा पड़ गया।
मरकत पन्ना-नागराज वासुकी, दैत्य के पित्त को लेकर आकाश मार्ग से जा रहे थे, रास्ते में गरुड़ ने उन पर हमला कर दिया, तो नागराज ने दैत्य के पित्त को वहीं सुरभित माणिक्य पर्वत की गुफाओं में रखा। वहीं पर पन्ना की खानें उत्पन्न हो गयीं।
इन्दु (नील)-राक्षस की दोनों आँखें भी उसी देश में गिरं जाने के कारण सागर तट की उस भूमि पर इन्दु मणि अर्थात् नील मणि उत्पन्न हो गयी।
वैदूर्य (लहसुनिया)-उस बल दैत्य के भेदने से विभिन्न रंगों के वैदूर्य उत्पन्न हो गये।
__ पुष्पराग पुखराज-दैत्य के शरीर की खाल हिमालय पर्वत पर गिरने से पुखराज की उत्पत्ति हुई।
वैक्रान्त (कर्केतन)-दैत्य के नाखून हवा में उड़कर कमलवन में जा गिरे वहाँ पर कर्केतन की उत्पत्ति हुई।
गोमेद (भीष्म रल)-बल दैत्य का वीर्य हिमालय के उत्तर भू-भाग में गिरा जहाँ पर गोमेद की उत्पत्ति हुई।
लाजवर्तादि पुलकादि-दैत्य बल के शरीर के अंग, बांहें आदि उत्तर प्रदेश की जिन नदियों एवं तराई स्थानों में गिरे वहाँ पर गुंजा, सुरमा, मधु, कमलनाल के वर्ण वाले गन्धर्व एवं प्रकाशमय पुलक रत्न आदि की उत्पत्ति हुई।
अकीक (रुधिराक्ष)-अग्नि ने उस दैत्य के रूप को नर्मदा नदी में ले जाकर प्रवाहित किया इस कारण उसमें रुधिराक्ष मणियाँ उत्पन्न हो गयीं।
मूंगा (प्रवाल-विद्रुम)-दैत्य की आँतों को जहाँ-जहाँ देशों में डाला गया। वहाँ-वहाँ उसकी आँतों के प्रभाव से मूंगे की उत्पत्ति हुई।
स्फटिक (मणि)-इस प्रकार दैत्य बल की चर्बी जिन स्थानों पर डाली गयी वहाँ स्फटिक मणि की खानें उत्पन्न हुईं जैसे चीन, नेपाल, कावेरी, विन्ध्य, यवन आदि देशों में यह होता है।
इस प्रकार रत्नों की उत्पत्ति उस बल दैत्य के अंगों से हुई। इन पौराणिक बातों को ध्यान में रखते हुए एक उपचार-तालिका भी रत्नों को
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