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★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★
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फसल, पुत्र, ज्ञान, वातरोग, शरीर पुष्टता, कण्ठ रोग, योनि रोग, मैत्री गुण, यन्त्र - मन्त्र भक्ति, संकट में धैर्यता, सहायता करने की भावना, सादा रहनसहन आदि क्षेत्रों पर प्रभाव रखता है ।
शुक्र - शुक्र के क्षेत्र निम्न हैं । वस्त्र, रत्न, भूषण, धन, इत्र, पुष्प, सुगन्धित द्रव्य, गीत, काव्य, कोमलता, यौवन, वैभव, साहित्य चर्चा, वशीकरण, इष्ट की सिद्धि, कला प्रेम, मधुर वाणी, गायन, वादन, फर्नीचर, स्त्री सम्बन्धकार, वायुयान, कामाग्नि, कामेच्छा, हँसी मजाक, नृत्य, विलास, वीर्य रमण, शैया स्थान, विवाह, इन्द्रजाल, आँख, रक्त, कफ, स्त्री दुख । यह रोग में प्रमेह, वीर्य विकार, मन्द बुद्धि, पुरुषार्थ, नर्स प्रशिक्षण, अधिकारी स्वतन्त्रता, व्यवसाय, प्राचीन संस्कृति का अभिमान, स्टेशनरी, मिष्ठान, व्यभिचार, मद्य उद्योग, अण्डाशय, उदर दाह, कन्या, सन्तान आदि पर प्रभाव डालता है ।
शनि -- शनि शरीर के वात संस्थान, पुंसत्व, स्नायु, मण्डल और गुह्य प्रदेश को विशेष रूप से प्रभावित करता है। जिस कारण से प्रेरित होकर मनुष्य आपराधिक कृत्य, चोरी, डकैती, ठगी, कुसंगति, पारिवारिक कलह तथा वैर विरोध की उत्पत्ति करता है ।
यदि शनि शुभकारक स्थिति में हो तो काले रंग, लोहा व्यवसाय, यन्त्रिकी, तैलीय पदार्थ, चर्म उद्योग आदि में सहायक होता है तथा बुद्धि विकास पाकर मनुष्य सिद्ध सन्त, संन्यासी, वकील, दार्शनिक और योगी भी बन जाते हैं ।
राहु-कुतर्क करना, दूसरों की गलतियाँ निकालना, भ्रम, अफवाहें फैलाना, प्रचार विभाग, पूर्वजों का गुणगान, लॉटरी लगाना, आकस्मिक कार्य, गड़ा हुआ धन मिलना ।
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