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* रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * रश्मियों को शोषित करने की प्रबल क्षमता होती है। अतः वह व्यक्ति उस रत्न को धारण कर उसके द्वारा उस दुर्बल ग्रह की क्षीण रश्मि को पूरा कर उसके प्रभाव को सबल बनाता है। इसलिए कमजोर ग्रह की पुष्टता के लिए उससे सम्बन्धित रत्न को धारण किया जाता है।
सूर्य-इसमें राजदूतावास, जुआ, सट्टा, वस्त्र का व्यापार, जवाहरात का कारोबार, दवाइयाँ, फोटोग्रॉफी, ऊनी वस्त्र, चाय का रोजगार, इंजीनियरिंग व विद्युत सम्बन्धी कार्य करना अति उत्तम है। यह बड़े भाई का गुण पितृ, यश, दाँयी आँख, कार्य, ज्ञान, आत्मा, प्रभाव, आरोग्य, मन की शुद्धता को बढ़ाता है तथा हृदय, पीठ, नाड़ी, राज्य कृपा व हड्डियों का प्रतिनिधित्व करता है।
_चन्द्रमा-यह स्मरण शक्ति, भावनाएँ मनोविकार, बाँयी आँख, फेफड़े, छाती, माता, यश, मन, बुद्धि, सम्पत्ति, मातृ चिन्ता, कृषि कर्म, निन्दा, ललित कलाओं के प्रति प्रेम आदि तथा औषधि क्षेत्र में व अनाज के व्यापार आयातनिर्यात, रेलवे, जहाज, श्वेत रंग की वस्तु, चाँदी, मोती आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
मंगल-वीरता, धैर्य, साहस, युद्ध, लूटमार, प्रदोष, गर्भ, प्रदर, रक्तपित्त, वायु खुजली, हड्डी के आन्तरिक तत्व, मज्जा, पुलिस विभाग, सेना विभाग स्वदेश प्रेम व रक्षा कार्य आदि का प्रतिनिधित्व करता है।
बुध-बुद्धि तत्व का स्वामी होने के कारण बुद्धि पर, शरीर में वक्ष, वाणी, मस्तिष्क, शिरोभाग, अन्त:संरचना, वायु तथा रक्त दोष, भौतिक कष्ट आदि पर प्रभाव डालता है। परिणाम स्वरूप स्मृति ह्रास, शिरो रोग, उन्मत्तता, श्वास काल, वाणी दोष, मुख, कण्ठ विकार तथा श्वास रोग व बुरी कल्पनायें तथा व्यवसाय, बैंक, बीमा शेयर से युक्त व्यसाय और विद्या के क्षेत्र में ज्योतिष ज्ञान वाग्मिता मनोविज्ञान आदि पर बुध का प्रभाव है।
बृहस्पति-बृहस्पति का क्षेत्र निम्न व्यवसायों पर प्रभाव डालता है। जैसे-नौकरी, लोकसभा, विधान सभा की सदस्यता, न्यायाधीश, लेखक, प्रकाशक, काव्य, राज्य कृपा तथा महत्वपूर्ण पद को प्राप्त कराने वाला है। साथ ही मांगलिक कार्य, शिक्षा, तीर्थ यात्रा, धार्मिक कार्य, वेद पाठन, स्वर्ण,
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