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________________ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * शिशु जब अपनी माँ के गर्भ से जन्म लेता है तो पूर्ण रूप से निर्विकार व रश्मिविहीन होता है, परन्तु पृथ्वी पर आते ही वह पृथ्वी के वायुमण्डल के सम्पर्क में आ जाता है और उसी क्षण ग्रहों की रश्मियाँ उस शिशु के निर्विकार शरीर को आच्छादित कर प्रभावित करती हैं। उस समय जिस ग्रह की रश्मियाँ घनीभूत होती हैं उस ग्रह की रश्मियों का प्रभाव सर्वाधिक रूप में होता है और जिस ग्रह की रश्मियाँ क्षीण होती हैं उस ग्रह का प्रभाव शिशु पर कम पड़ता है। अतः शिशु जिस ग्रह की रश्मियों से सबसे पहले आच्छादित होता है उस ग्रह का प्रभाव उस शिशु को जीवन भर प्रभावित करता है। सभी ग्रहों की रश्मियाँ अलग-अलग होती हैं। अतः सूर्य-लाल रंग की, चन्द्रमानारंगी रंग की, मंगल-पीले रंग की, बुध-हरे रंग की, बृहस्पतिआसमानी रंग की, शुक्र-नीले रंग की, शनि-बैगनी रंग की रश्मि या किरणें छोड़ता है। इसी प्रकार प्रत्येक रत्न एक ग्रह विशेष की किरणें ग्रहण करके धारक व्यक्ति के शरीर में पहुँचाता है। ज्योतिषियों तथा प्राचीन ऋषि महर्षियों ने अपने अनुभव के आधार पर निश्चय किया कि किस ग्रह की कितनी रश्मि शक्ति मनुष्य के लिए कल्याणकारी व जीवनदायी होती है तथा दूसरे किस ग्रह की रश्मियों का कैसा सामन्जस्य उसके लिए कल्याणकारी होगा। इसी आधार पर उन्होंने विभिन्न ग्रहों के लिए विभिन्न रत्न धारण करने का परामर्श दिया है। कारण कि एक विशिष्ट रत्न में एक विशिष्ट ग्रह की रश्मियों को अपने में शोषित करने की प्रबल शक्ति होती है। जिस प्रकार एक वस्तु से दूसरी वस्तु में विद्युत प्रवाहित करना सम्भव होता है उसी प्रकार वह रत्न उन विशेष रश्मियों को शोषित कर मानव शरीर में प्रवाहित कर देता है। जिस प्रकार जिस पौष्टिक तत्व की कमी से शरीर कमजोर और रोगग्रस्त हो जाता है तो उसकी पूर्ति के लिए डाक्टर दवाईयाँ खाने को बताता है। ठीक उसी प्रकार जो ग्रह व्यक्ति के लिए कष्टकारक होता है उस व्यक्ति को बहुत मुसीबत व कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है व हानि होती है। इसके निवारण के लिए अमुक व्यक्ति के उस ग्रह को सबल बनाने के लिए उससे सम्बन्धित विशिष्ट रत्न को पहना जाता है। जिसमें उस ग्रह की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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