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रत्नों से ग्रहों का सम्बन्ध
रत्नों और ग्रह का आपस में घनिष्ठ सम्बन्ध है। सौर मण्डल में स्थित सभी ग्रह नक्षत्र व तारे अपनी रश्मियाँ भूमण्डल पर फैलाते हैं जिनका प्रभाव इस भूमण्डल के प्रत्येक प्राणियों, वनस्पतियों व खनिजों के जीवन पर पड़ता है तथा ये सभी प्राणियों, वनस्पतियों व खनिजों के जीवन तथा क्रिया कर्म को अपनी रश्मि के द्वारा प्रभावित कर संचालित करते हैं । ग्रह से निकलने वाली ये रश्मियाँ देखने में सफेद लगती हैं परन्तु ये सात रंगों से युक्त होती हैं । उदाहरण के लिए सूर्य की किरणों से आप भली-भांति परिचित हैं यह किरणें देखने में सफेद रंग की न होकर सात रंगों का समिश्रण होता है। आसमानी, पीला, लाल, नीला, बैगनी, हरा, नारंगी आदि रंग की किरणें होती हैं। इसकी झलक वर्षा के मौसम इन्द्रधनुष के रूप में देखी जाती है। वर्षा के मौसम में जल की बूँदों से होकर जब सूर्य की किरणें पृथ्वी पर आती हैं तो ये किरणें सात रंग में विभक्त होकर इन्द्रधनुष का रमणीक व मनोहारी दृश्य उपस्थित करती हैं। इसे हम काँच के त्रिकोणाकार खण्ड द्वारा भी सूर्य की किरणें पार कर सादे कागज पर डालकर देखते हैं तो किरणें सात रंगों में स्वतः विभक्त दिखायी देती हैं । अतः जब हम कोई वस्तु देखते हैं तो वे इन्द्रधनुष की तरह सात रंगों में क्यों नहीं दिखाई देती है ? इसका कारण यह है कि जब हम सूर्य किरणों के ऊपर लाल कपड़े डालते हैं तो वह लाल रंग लाल कपड़े के बाहर कर देता है शेष छः रंगों को अपने अन्दर सोख लेता है। अतः ये लाल रंग की रश्मियाँ जब हमारी आँख के अन्दर जाती हैं तो वह कपड़ा लाल रंग का दिखाई देने लगता है। इसी प्रकार जो भी वस्तु जिस रंग में हम देखते हैं वह वस्तु अपने दिखने वाले रंग को बाहर फेंककर शेष रंगों
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