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________________ १६८ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ इससे पीड़ित रहते हैं। इस रोग में सर्वप्रथम आमाशय पर सूजन के लक्षण स्पष्ट होते हैं। ऑपरेशन द्वारा ही इस रोग का एक मात्र उपचार है। ज्योतिषीय विचार-शुक्र और मंगल इस रोग के कारक ग्रह हैं। शुक्र, वृश्चिक राशि में हो और शनि तथा मंगल छठे भाव हो तो हर्निया होने का योग बनाता है। कन्या राशि का मंगल शनि द्वारा पीड़ित होने पर यह रोग हो सकता है। चाँदी की चेन में मोती के दाने पिरोकर गले में पहनें। हीरा व पीला पुखराज धारण करना भी लाभकारी माना गया है। दाँत दर्द या दन्त क्षय यह एक सामान्य रोग है। जिससे सभी प्राणी पीड़ित हैं। दाँतों की ठीक प्रकार देखभाल न होने के कारण यह रोग होता है अधिक मीठा खाने से भी यह रोग होता है। जैसे-मिठाई, गुड़, चाकलेट आदि। मीठा खाने के बाद दाँतों की सफाई न करना इसके कारण हैं जिनसे दन्त रोग हो जाता है। दाँतों की भली-भाँति सफाई ही इसका उपचार है। ज्योतिषीय विचार-दाँतों पर बृहस्पति का अधिकार है। दूसरे, नवें या बारहवें भाव में बृहस्पति पीड़ित हो तो व्यक्ति को दन्त रोग होने की सम्भावना रहती है। नीच राशि का बृहस्पति ऐसा ही योग बनाता है। लोहे का कड़ा पहनें। लाल या सफेद मूंगा पुखराज पहनना भी लाभकारी है। यकृत शोथ इसे हीपेटाइटिस के नाम से जाना जाता है। इस रोग में यकृत में सूजन आ जाती है। हीपेटाइटिस-ए तथा हीपेटाइटिस-बी इन दो नामों से इस रोग का वर्गीकरण होता है। यह रोग दूषित जल व विषाक्त भोजन से फैलता है। कुछ वायरस भी रक्त में संक्रमण करके रोग उत्पन्न करते हैं। इस रोग में सिरदर्द, वमन, जी मिचलाना तथा ज्वर आदि के लक्षण स्पष्ट होते हैं। तीनचार दिन बाद पीलिया के लक्षण स्पष्ट दिखाई देने लगता है। मूत्र का रंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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