________________
१४१
★ रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ संश्लिष्ट (मिक्स्ड) और कृत्रिम (डुप्लीकेट) रत्न के अतिरिक्त युग्म (डबलिट) रत्न को दो पत्थरों को जोड़कर एक रत्न बनाया जाता है। इसका ऊपरी भाग तो एकदम असली रत्न का होता है और निचला भाग उसी रंग का सर्वथा नकली होता है तथा इसका रंग ऊपरी रंग के रत्न से थोड़ा गाढ़ा (डार्क) रखा जाता है, जिस कारण असली रत्न का रंग पहले से भी कहीं अधिक आभापूर्ण और चमकदार हो जाता है।
उपर्युक्त रत्न के अतिरिक्त तीन भाग वाले रत्नों का निर्माण भी किया जाता है। इसके निर्माणकाल में ऊपरी और निचली पर्त तो असली रत्न की रखी जाती हैं और बीच में नकली पत्थर (काँच) रखा जाता है । इस क्रिया से रत्न की ऊपर-नीचे की दोनों पर्ते आकर्षक और मनमोहक प्रतीत होती हैं। यह रत्न तीन पदार्थों का समुदाय होता है। प्राकृतिक और संश्लिष्ट रत्नों को निम्न अन्तरों से पहचाना जा सकता है
संश्लिष्ट रत्नों का रंग प्रायः ठीक नहीं होता, क्योंकि वो एकसार होता है और उसमें काँच जैसी तीव्र चमक विद्यमान होती है। प्रकृत या वास्तविक (जेनुइन) माणिक्यों, नीलम आदि में रत्न के विभिन्न अंशों के रंग में कुछ भिन्नता होती है और यदि रंग की धारियाँ-सी दिखाई देती हैं, तो निःसन्देह वो सामानान्तर होती हैं या अनियमित होती हैं, वक्र तो कदापि नहीं होतीं। इन रत्नों में रासायनिक पदार्थ के जर्रे वक्रता के साथ बने होते हैं। प्रकृत रत्नों में जर्रे छोटे-बड़े होते हैं और अनियमित रूप से कुछ छितरे होते हैं।
यदि आन्तरिक धारियाँ वर्तमान होती हैं, तो प्रकृत रत्नों में वो सीधी होती हैं जबकि संश्लिष्ट रत्नों में वो साधारणतया वक्र होती हैं। साथ ही संश्लिष्ट रत्नों में छोटे-छोटे हवा के बुलबुले दिखलाई पड़ते हैं, जो साधारणतया बिल्कुल गोल होते हैं। वास्तविक मूल रत्नों में यदि बुलबुले हाते हैं, तो वे अनियमित आकार के होते हैं तथा उनका रंग-रूप प्रकृत रत्नों के समान हो जाता है। जो आंतरिक प्रकाशकीय प्रभाव माणिक्य, नीलम और पुखराज में दिखाई देता है और जिसे रेशम कहा जाता है, संश्लिष्ट रत्नों से कभी उजागर नहीं होता। संश्लिष्ट और प्रकृत रत्नों की एक विशेष पहचान यह भी है कि यदि उन दोनों को मेथालीन आयोडाइड के सोल्यूशन में डाला जाए, तो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org