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________________ १४० * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * तथा उनमें कुदरती चमक और टिकाऊपन हो। सम्भवतः बहुमूल्य रत्नों में इसलिए ही हीरा, नीलम, पन्ना, माणिक्य और मूल्यवान ओपल या दूधिया पत्थर (मिल्क स्टोन) की गणना की जाती है। अपनी मनमोहक आभा एवं आकर्षक रूप के मोती भी मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में आते हैं । यद्यपि मोती कोई खनिज पदार्थ नहीं हैं, बल्कि जैविक उत्पादन हैं। मूल्यवान रत्नों की श्रेणी में जिनको स्थान प्राप्त नहीं होता, अल्पमोली रत्नों में केवल वो ही खनिज पदार्थ आते हैं। आकर्षक आभूषणों में तो अल्पमोली रत्नों को एक विशेष स्थान प्राप्त है, क्योंकि ये आभूषणों की शोभा बढ़ाने में अद्वितीय होते हैं। कुछ विशेष अल्पमोली रत्नों के नाम ये हैं१. पुखराज २. कटैला ३. नीलमणि ४. जिरकॉन ५. तुरमली ६. हरितमणि ७. लालड़ी ८. चन्द्रकान्त उपर्युक्त पत्थरों में पर्याप्त मात्रा में कठोरता, सुन्दरता, आभा और टिकाऊपन होता है। मूल्यवान तथा अल्पमोली रत्नों की दो श्रेणियाँ और भी १. संश्लिष्ट रत्न २. कृत्रिम रत्न संश्लिष्ट रत्न कहीं से प्राप्त नहीं होते बल्कि बनाए जाते हैं। इनके बनाने में असली रत्नों के तत्वों का इस प्रकार मिश्रण किया जाता है कि तैयार हो जाने पर असली रत्न की भाँति ही उनकी चमक-दमक और रंग-रूप होता है। कृत्रिम रत्नों को इमीटेशन कहा जाता है। संश्लिष्ट रत्न कृत्रिम (नकली) रत्नों से अधिक टिकाऊ होते हैं, क्योंकि कृत्रिम रत्न चाहे जैसा भी रंग-रूप और आकार प्राप्त कर लें, किन्तु होते तो प्लास्टिक अथवा काँच के ही हैं । अपारदर्शक कृत्रिम रत्नों को बनाने में तो अधिकतर प्लास्टिक का ही प्रयोग किया जाता है। एक अन्य प्रकार का रत्न भी होता है, जिसे 'युग्म रत्न' कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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