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________________ १४२ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान * संश्लिष्ट रत्न सतह पर आकर तैरने लगेगा और प्रकृत (असली-वास्तविक) रत्न तल में जाकर बैठ जाएगा, अर्थात् सोल्यूशन में डूब जाएगा। संश्लिष्ट रत्नों का अधिकतर निर्माण फ्रांस और जर्मनी में होता है। वैसे रूस, स्विट्जरलैण्ड और इटली में इन रत्नों का उत्पादन होता है तथा कृत्रिम रत्नों को तो रत्न कहना ही उपयुक्त नहीं होगा, ये तरह-तरह के काँच के बने होते हैं और इन पर क्विक सिल्वर का कोट चढ़ाया जाता है। उत्तम प्रकार की कृत्रिम मणियों में लैड ऑक्साइड की मात्रा ही प्रमुख होती है, जिससे कि काँच की चमक पहले से कई गुना बढ़ जाती है किन्तु यह चमक स्थायी नहीं होती और अतिशीघ्र लोप हो जाती है। रत्नों की रंगाई ग्रह नक्षत्र अपनी किरणों द्वारा पृथ्वी पर चल-अचल, जीव-जन्तुओं आदि को प्रभावित करते हैं । रत्नों से निकलने वाली किरणें तीव्र होती हैं इसी कारण से रत्नों का महत्त्व विशेष होता है। जैसे हरे रंग का काँच का टुकड़ा और पन्ना में, अन्तर यह है कि पन्ना में जितनी मात्रा में हरे रंग की किरणें होती हैं उतनी हरे काँच में नहीं। अत: हरे काँच से निकली हुई किरणें उतना लाभ नहीं पहुँचाती जितना कि पन्ने से निकली हुईं। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि जिस प्रकार गंगाजल का मुकाबला अन्य नदियाँ नहीं कर सकतीं, उसी प्रकार से वास्तविक रत्नों का मुकाबला कृत्रिम रन नहीं कर सकते। । कृत्रिम रूप से रंग भरने की प्रक्रिया प्राचीन काल से चली आ रही है। यह क्रिया रत्नों को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए प्रयुक्त होती है। रंग भरते समय बड़ी सावधानी की जरूरत पड़ती है। जैसे-ताप अधिक न हो, रसायन में निश्चित अवधि से अधिक समय तक नहीं रखा जाए आदि। जोबन/रसायन, अवधि आदि विभिन्न रत्नों के लिए अलग-अलग होती है। अधिकांशतः पन्ना व माणिक्य को नींबू व सोडे के घोल में कम से कम १२ घण्टे रखा जाता है। तत्पश्चात् गुनगुने पानी से धोया जाता है तथा पूरी तरह से सुखाने के पश्चात् जोबन में छोड़ा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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