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________________ १२९ * रत्न उपरत्न और नग नगीना ज्ञान ★ स्वयं झेलकर धारक को अभय प्रदान करता है। हकीक पत्थर से शिवलिंग आदि अनेक प्रकार की मूर्तियाँ भी बनाई जाती हैं। हकीक पत्थर की मालाएँ भी बनती हैं जो अपने विभिन्न रंगों में प्राप्त होने के कारण नवग्रह शान्ति के लिए धारण की जाती हैं साथ ही साथ इसके विभिन्न रंगों की मालाओं पर विभिन्न ग्रहों के जाप भी किए जाते हैं। पारस मणि (Philosphers Stone) पारस मणि हिमालय, त्रिकूट पर्वत, नन्दापर्वत, गण्डकी नदी और नेपाल के पहाड़ों पर पायी जाती है। इस मणि को बहुत भाग्यवान ही प्राप्त कर सकता है। इसे पाने के लिये हिमालय पर्वत पर जाना चाहिये। वहाँ पर जमीन पर हरे रंग के चिन्ह दिखाई देगें और 'पन्ना' रत्न चमकेगा। थोड़ी दूर पर दुग्ध धवल गड्ढ़ों के दर्शन होंगे। उसी के किनारे तेज धार में काले पहाड़ के शिखर पर पारस मणि का स्थान है। ये यहीं से यह गण्डकी में बहकर आ जाते हैं और उसके किनारे पर भी भाग्यशाली के हाथ लगते हैं। इसे परखने के लिये लोहा साथ रखें। पारस के स्पर्श होते ही लोहा सोना हो जाता है। पारसमणि के स्वामी त्रिभुवननाथ त्रिपुरारी भोलेनाथ हैं। जिस राज्य में यह मणि हो वह सम्राट हो जाता है। इस मणि के पास रहने पर रोग, दुःख दरिद्रता दूर रहते हैं तथा बल, वीरता, बुद्धि बढ़ाती है। पारस के संग चार प्रकार के होते हैं-(१) संग चुम्बक (२) संग टेड़ी (३) संग चकमक (४) संग कसौटी। संग चुम्बक-यह संग काला और हल्का नरम होता है। इसमें आकर्षण शक्ति होती है। लोहे को अपनी ओर खींच लेता है और चिपका लेता है। इसकी खानें विन्ध्य हिमालय की तराइयों में होती हैं। संग टेड़ी-यह काला, भूरा, अबरी, भारी और चिकना होता है। जो विन्ध्य, खम्भात, ईरान और नर्मदा आदि में पाया जाता है। संगचकमक–पथरी नाम से प्रसिद्ध यह संग सफेद, काला, चमकदार और चिकना होता है। इसे आपस में रगड़ने से अग्नि प्रकट होती है। यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001749
Book TitleRatna Upratna Nag Nagina Sampurna Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKapil Mohan
PublisherRandhir Prakashan Haridwar
Publication Year2001
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Astrology, & Occult
File Size10 MB
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