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________________ ७० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास तिरासी (८३) दिन तक भगवान् पार्श्व अनेक परीषहों और उपसर्गों को समभाव के साथ सहन करते रहे। चौरासिवें दिन वाराणसी के आश्रमपद उद्यान में घातकी वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यानस्थ चैत्र कृष्णा चतुर्थी को उन्हें कैवल्य पद की प्राप्ति हुई । श्रावण शुक्ला अष्टमी को विशाखा नक्षत्र में सम्मेतशिखर पर वे निर्वाण को प्राप्त हुये। भगवान् पार्श्वनाथ ने चातुर्यामधर्म का प्रतिपादन किया । वे चार धर्म हैं- हिंसा न करना (अहिंसा), झूठ न बोलना (सत्य) चोरी न करना (अस्तेय) और बाह्य पदार्थों का संचय न करना (अपरिग्रह)। चौबीस तीर्थंकरों में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर ने पंचमहाव्रत रूप धर्म का प्ररूपण किया था। शेष तीर्थङ्करों ने चातुर्यामधर्म का प्रतिपादन किया। चातुर्यामधर्म में ब्रह्मचर्य को पृथक् याम के रूप में स्वीकार नहीं किया गया है, यद्यपि अपरिग्रह में ब्रह्मचर्य निहित है, क्योंकि बिना परिग्रह के स्त्री का भोग सम्भव नहीं है। आपके धर्म परिवार में १० गणधर, १००० केवलज्ञानी, ७५० मनः पर्यवज्ञानी, १४०० अवधिज्ञानी, ११०० वैक्रियलब्धिधारी, ३५० चतुर्दश पूर्वी, ६०० वादी, १६००० साधु, ३८००० साध्वी, १६४००० श्रावक और ३३९००० श्राविकायें थीं। भगवान् महावीर महावीर इस अवसर्पिणी काल के अन्तिम तीर्थंकर हैं। भगवान् ऋषभदेव से प्रारम्भ तीर्थङ्कर परम्परा की अन्तिम कड़ी के रूप में भगवान् महावीर का नाम आता है। महावीर का जन्म विदेह जनपद की वैशाली नगरी के एक उपनगर कुण्डग्राम में हुआ। वैशाली के अन्तर्गत कई उपनगर थे जैसे क्षत्रियकुंडग्राम, वाणिज्यग्राम, कर्मारग्राम और कोल्लाग सन्निवेश । वर्तमान में ये उपनगर कुंडग्राम, बनियावसात और कोल्हुआ ग्राम के नाम से विद्यमान है। वहाँ की बोलचाल की ग्रामीण भाषा में अभी भी अर्द्धमागधी के शब्दों का प्रयोग होता है, यथा-एगो, अत्थि, जाणई, हत्थि आदि । महावीर के जन्म के साथ श्वेताम्बर परम्परा में उनके गर्भ परिवर्तन की एक कथा जुड़ी हुई है। ब्राह्मण कुंडग्राम में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम देवानन्दा था। आषाढ़ शुक्ला षष्ठी को उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में स्वर्ग से राजा नन्दन अथवा नयसार का जीव देवानन्दा के गर्भ में अवतरित हुआ । गर्भधारण की रात्रि को देवानन्दा ने चौदह महास्वप्न देखे, किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। अवधिज्ञान से उस गर्भधारण की जानकारी इन्द्र (शक्रेन्द्र) को हुई कि भगवान् महावीर ब्राह्मणी देवानन्दा के गर्भ में अवस्थित हो चुके हैं। यह जानकर सर्वप्रथम उन्होंने भगवान् की वन्दना की और विचार किया कि परम्परानुसार तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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