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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास छइ, यति स्यइ न पूजइ, धर्म तउ यतीइं पुण करिवउ? तउ केतला एक कहिस्यइं- जे यती विरती छइं पण जो वउनई (उसे) पाप करिवानउ नीम छइ पणि कर्क करवानउ नीम नथी, डीलइ स्युइ नहीं पूजइ? (प्रश्न सं०७)
तथा प्रतिमा ना वांदणार प्रतिमा नइ वांदइ तिवारइं वंदना केहनइ करइ छइ? जइ इम कहइ जे वे प्रतिमानइ वांदउं छउं, तउ वीतराग अलगा रह्या, वंदाणा नहीं, अनइ इम कहइ जे ए वन्दना वीतराग नई तउ प्रतिमा अलगी रही। अनइ जइ इम कहइ एहज वीतराग -जू जूआ नहीं (दोनों जुदा अर्थात् पृथक् नहीं) तउ अजीव सना थाइ अनइं जीव एक समइ बि (बे) किरिया तउ न देयइ। (प्रश्न सं०८)
तथा केतला एक ना देव-गुरु-धर्म सारम्भी, सपरिग्रही छइ, अनइ केतला एक ना देव-गुरु-धर्म निरारम्भी, नि:परिग्रही छई विचारी जोज्यो जी ।। (प्रश्न सं०९)
तथा केतला एक इम कहइ छइं जो अवनउ नइं (उन्हें अथवा किसी को) पूतली दीखइ-राग उपजइ, तउ प्रतिमा दीठइ विराग स्युइ न उपजइ? तेहना उत्तर- को एक अनार्य पुरुष नइ प्रहार मुंकइ तउ पाप लागइ तउ तेहनइं वांद्यइ धर्म स्युइ न लागइ? तथा बेटा वोसिराव्या न हुई तउ तेहनउं कीधउ पाप बाप नइ लागइ पणि बेटा नउ कीधउ धर्म स्युइ न लागइ। तथा केतला एक इम कहइ छांण नउ स्याहीस (श्याह अहीश-काला सांप) कीधउ होइ अनइं भांजियइ तउ पाप, तउ तेहनइं वांद्यइ तथा दूध पायइ तथा वीसामण कीधइ धर्म स्युइ नहीं ? (प्रश्न सं०१०) - तथा केतला एक इम कहइ छई अम्हारइ प्रतिमां नई पूजतां हिंसा ते अहिंसा। तउ रेवती नउ पाक श्री वीतरागई स्युइ नी लीघउ, आधाकर्मिक आहार स्युइ न ल्यइ? जे फूल, पाणी नी भक्ति ते बाह्य वस्तु छइ अनइ लाडूआ जलेबी आदि देइ श्री वीतराग गणधर, साधुनइ काजई करइ तउ एतउ अंतरंग भक्ति छइ, आगलि वली धर्म नी वृद्धि घणी थाइ, विचारीजो ज्यो जी ।। (प्रश्न सं०११)
तथा वली कोई एक गछी नां वाणिज नउ नीम (नियम) नव भंगीई ल्यइ अनइ गछी ना वणिज नउ लाभ बीजानइ देखाइ तउ तेहना नीम भाजइ, तउ जो अउनइं जेणइं पंच महाव्रत ऊचर्या होइ ते सावध करणी मांहि लाभ देखाइ तउ तेहना व्रत ठामि किम रहई? विचरी जो ज्यो जी (प्रश्न सं०१२)
तथा श्री अरिहंत नी स्थापना मांहिं श्री अरिहंत ना गुण नथी, अनइ गुरु नी स्थापना मांहिं गुरु ना गण नथी। केतला एक इम कहई छई-जे गुण तउ स्थापना मांहिं नहीं पणि आपणउ भाव भेलियउइ तउ वंदनीय थाइ तउ हवइ जो वउनई (उसे) गुण विना देव नी गुरु नी स्थापना मांहि आपणई भावि घाल्यइ गरज सरइ तउ बाप नीमानी (बीय नीमानी-अन्य नियमो की) तथा रूपा, सोना, जवाहर, गुल, खांड, साकर प्रमुख आपणइ भावि घाल्यइ गरज स्युइ न सरइं ? आगिली वस्तु मांहि पितादिक (पीतादिकए) नउ गुण
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