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________________ ५१२ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास समणं भगवं महावीरं तिखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति। करेइत्ता जाव नमंसित्ता एवं वयासी-"आलित्तेणं भंते लोए, पलित्ते णं भंते लोए आलित्तपलित्ते णं भंते लोए, जरा- मरणेण य से जहानामए केइ गाहावइ आगारंसि हूयायमाणंसि से जे तत्थ भंड़े भवइ अप्पसारे मोल्लगुरुए तं गहाय आयासे एगंतमंतं अवक्कमति एस मे नित्थारिए समाणे पच्छा पुराए हिआए सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामित्ताए भविस्सइ, एवमेव देवाणुप्पिआ मज्झ वि आया एगे भंड़े इडे कंते पिए मणुण्णे मणामे धेज्जे विस्सासिए संमए बहमए अणुमए भंडकरंडसमाणे, मा णं सीअं,मा णं उण्हं, माणं खहा, माणं पिवासा, माणं चोरा, मा णं बाला, मा णं दंसा, मा णं मसगा मा णं वाइअपित्तिअसंभिअसन्निवाइय विविहा रोगायंका परीसहोवसग्गा फुसंतु त्ति कट्टु एस नित्थारिए समाणे समाणे परलोअस्स हिआए सुहाए खमाए, नीसेसाए आणुगामिंयत्ताए भविस्सइ।" इहांइ खंदकई श्री महावीर नई इम कहिडं। जिम एक को एक गृहस्थनइ घरि आगि लागु हुइ ते घर - घणी सार वस्तु काढ़इ अनइ इम कहइ-“ए सार भण्डार काढयुं हुंतु मुझनइ पच्छा पुरा हियाए सुहाए इत्यादि हुसिइ। अनइ हुँ जे चारित्र लेऊ छं ते मुझनई परलोगस्स हियाए सुहाए इत्यादि हुसिइ।" हवइं जुओ नई लक्ष्मी काढयाना अनइ चारित्र लीधाना शब्द ना केतला फेर छइं? “हिआए सुहाए जाव आणुगामीए" ए शब्द तु बेहु अधिकारइं कह्या छइं, पणि लक्ष्मी काढी तिहां इम कह्यु पच्छा पुरा औनइ चारित्र लीबूं तिहां इम कडं- “परलोगस्स" 'तु जोउनइ जिम इहाइ एवड़ा फेर शब्दना छइं, तिम सूरिआभनइं पणि आलावइ जिहां प्रतिमा पूजी तिहां “पुव्विंपच्छा", अनइ जिहां वीतराग वांद्या तिहां “पेच्चा" इम कहउं। एवड़ा शब्द ना फेर छइ ए आलावानई मेलई सूरिआभदेवताई प्रतिमा पूजी। अनइ प्रतिमा आगलि नमोत्थुणं कह्यु ते जूइ खातइ। अनइ श्री वीतराग वांद्या ते जूइ खातइ । तथा जिम प्रतिमानई पुट्विं पच्छा कहिउं छइ तिम दाढ़ नी पूजामई पणि पुव्विं पच्छा कहिउं छइ। ए बेहू अधिकार एक बाजउइं। तथा केतलाएक इम कहइं छइं- जे सुधर्मासभाई तीर्थंकर नी दाढ़ छइ, तिहां देवता मैथुन न सेवइ। तेह भणी दाढ़ सम्यक्त्वनइ खातइ। तओ जोओनइसम्यक्त्वनइ खातइ हुइ तओ पुट्विं पच्छा कां कहइ? अनइ धम्मि ववसाइयं पणि कां कहइ? ____तथा श्री ठाणांग मध्ये त्रीजइ ठाणइ व्यवसाय त्रीणि कह्यां, ते लिखीइ छइ छ"तिविहे ववसाए पण्णत्ते तं जहा धम्मिए ववसाए, अधम्मिए ववसाए, धम्मिअधम्मिए, ववसाए"- ते धर्म व्यवसाय साधुनउ धर्माधर्म व्यवसाय श्रावकनउ, बाकी बावीस दण्डक अधर्मव्यवसाय कह्या तओ जुओनई-"देवता श्री वीतरागे अधर्मव्यवसाय कह्या, अनइ जिहां सूरिआभदेवता प्रतिमा तथा द्रह वावि इत्यादि पूजवा आप्यु तिहां इम कहिउं जे धम्मिअं ववसाइअं गिण्हिज्जा।" अनइ ठाणांग मध्ये दसमइ ठाणइ धर्म तउ दस कह्यां-“दसविहे धम्मे पनते, तं जहा- (१) गामधम्मे, (२) नगरधम्मे, (३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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