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________________ ५०० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास इम ज्ञान चारित्र नइ अर्थइ अकल्पनीक ले तु (तो) शुद्ध॥१०॥ तथा प्रवचननां हित नई अर्थि पडिसेवंतो शुद्ध, विष्णु कुमार नी परिं । तथा जिम कोई राजाई कहिउं-तुम्हो ब्राह्मणां नई वांपु, पछइ सर्व संघ एकठो थइ कहिवा लागउ जेह नइ क्ति सावद्य-निरवद्य हुइं ते प्रजुंझउं । तिवारइं एकई साधई कह्यु-हूं प्रजूंझू । सर्व ब्राह्मण एक्ठा कराव्या, तेणइं साधई कणवीर नी कांबडी मन्त्री, सर्व ब्राह्मण एक्ठा थया हता, तेहनां मस्तक उतार्या पछइ राजा उपरि रूठो, पछई राजा बीहतो पगे लागो। तथा अनेरा आचार्य इम कहइ छइ-ते राजा पणि तिहां चूर्ण कीधु। इम प्रवचन संघ-ते हनइ अर्थइ सेवइ तो शुद्ध-अप्रायश्चित्ती, इत्यादि विरुद्ध अघटता चूर्णि माहइ घणा छइ।।११।। तथा कामणा, उच्चाटण, वशीकरणादि सूत्रइ निषेध्या छइ, अनइ इहां करवा बोल्या छइ।।१२॥ तथा सूत्रई काचां फल, कांचु जल निषेध्यउं छइ, अनइं चूर्णि मध्ये लेवू का छइ, ते लेतां दोष नथी। वली इम कडं छइ-गीत गायवा भणी पाकुं तांबूल पत्र खात तउ निर्दोष कह्यु- ए विचारदुं । इत्यादि घणां विरुद्ध छइ, डाहो होइ ते विचारइ। ए पूर्वइं सर्व अधिकार लिख्या छई, ते निशीथ चूर्णि मध्ये धुरि पीठिका मांहिं छइ।।१३।। तथा निशीथ सूत्र नां प्रथम उद्देशक मध्ये सूत्र मांहिं मैथुन एकांति निषेध्यू छई अने तेहनी चूर्णि मध्ये चउथा व्रत नइ पणि अपवादई सेववा नां प्रकार कह्यां छइ। डाहो हुयइ ते विचारयो (ज्यो)। एहवा चूर्णि मध्ये घणां विरुद्ध छइ॥१४॥ । तथा साध्वी नइ पणि अपवादि चउथा व्रत आश्री सेववानी घणी फजेती कही छइ, डाह्यो होइ ते एहवी फजेती किम सद्दहइ॥१५॥ तथा सूत्र मध्ये सचित्त फूल फल निषेध्या कह्या छइ, चूर्णि मध्ये सचित्त फूल सूंघवा कह्या छइ॥१६॥ तथा सूत्र मध्ये छ: काय विराधना करवी निषेधी छइ, अनइ ईहां चूर्णि मध्ये उपाश्रयइ पाणी नउ मार्ग करइ तिहां छ: काय नी विराधना लागइ तउ पणि शुद्ध ए न करइ तउ दोष इम कहिजे छड्।।१७।। तथा उद्देशा २ नी चूर्णि मध्ये दुक्कालि भत्तादिक अदत्ता लेवउ कहउ छइ, अनइ सूत्र मध्ये अदत्त निषेध्युं छइ। डाहो होई ते विचारयो ॥१८॥ तथा सूत्र मध्ये स्नान सर्वथा निषेध्युं छंई, इहां चूर्णि मध्ये स्नान करतां लाभ देखाड्यो छइ।।१९॥ तथा सूत्र मध्ये खासडां पहिरवां चारित्रयां नई निषेध्या छइ, चूर्णि मध्ये पहिरवां बोल्या छइ, लोक देखइ तिहारइं उतारि गांम मांहिं पइसइ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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