SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८६ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री. मगनलालजी आपका जन्म वि० सं० १९६५ में इन्दौर में हुआ। युवाचार्य श्री छगनलालजी के शिष्य के रूप में वि० सं० १९७९ कार्तिक वदि सप्तमी के दिन आपने आहती दीक्षा ग्रहण ली। मुनि श्री नेमिचन्दजी आप ताल (मालवा) में हुआ। वि०सं० १९९० में आप ताल में ही दीक्षित हुये। श्री नन्दलालजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री रायचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९१२ में रतलाम में हुआ। ३५ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९४७ में आप मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये। मुनि श्री भगवानजी आपका जन्म वि० सं० १९१० में नगरी में हुआ। ४० वर्ष की अवस्था में आपने मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री नृसिंहदासजी आपका जन्म बोरखेड़ा (जावरा) में हुआ। वि०सं० १९५१ में आप मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्य हुये। मुनि श्री भूपजी आप रतलाम के निवासी थे। वि०सं० १९५७ में खाचरौंद में आप मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्य बने । मुनि श्री नाथूलालजी आपका जन्म मन्दसौर में हुआ। मन्दसौर में ही वि०सं० १९६५ में मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्य बने। अपने संयमी जीवन में १ से लेकर १५ तक की लड़ी की तपस्या की तथा ३०,३१,३८,४५,४७ दिनों के थोक किये । साथ ही १२ महीने के १२ तेले आप हमेशा किया करते थे। आपने कई अट्ठाईयाँ भी की थीं। एक बार आपने ४१ का एक थोक अभिग्रह के साथ पूर्ण किया। तपस्या में खड़े-खड़े प्रतिक्रमण और ४० लोगस्स का कायोत्सर्ग किया करते थे। मुनि श्री मन्त्रालालजी ___ आपका जन्म मन्दसौर निवासी नाहटा गोत्रीय ओसवाल परिवार में हुआ था। मन्दसौर में ही मुनि श्री नन्दलालजी के शिष्यत्व में वि०सं० १९६६ में दीक्षित हुये। आपको जैन एवं जैनेतर शास्त्रों का अच्छा ज्ञान था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy