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________________ आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा . ४८५ मुनि श्री विजयराजजी आप कुरडाया (मारवाड़) के रहनेवाले थे। वि० सं० १९८३ में आप नाथद्वारा में दीक्षा धारण कर मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य बने। अपने संयमी जीवन में केवल गर्म पानी के आधार पर आपने ४४ की तपस्या की थी जिसके किए आपको ‘तपस्वी' अलंकरण से अलंकृत किया गया था। मुनि श्री मोहनलालजी __ आपका जन्म वि०सं० १९७२ में नीमच नगर में हुआ। वि० सं० १९८३ में आप मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य बने । आपकी दीक्षा सादड़ी (मारवाड़) में हुई थी। मुनि श्री सोहनलालजी आपका जन्म वि० सं० १९७४ में नीमच नगर में हुआ। वि०सं० १९८३ में सादड़ी में मुनि श्री चौथमलजी के शिष्यत्व में आप दीक्षित हुये । आप मुनि श्री मोहनलालजी के अनुज थे। मुनि श्री हुक्मीचन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९६५ में उदयपुर में हुआ। १९ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९८४ में आपने मुनि श्री चौथमलजी के शिष्यत्व में दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री नन्दलालजी आपका जन्म वि०सं० १९५६ में इन्दौर में हुआ। वि०सं० १९८० कार्तिक शुक्ला सप्तमी के दिन इंदौर में ही मुनि श्री चौथमलजी द्वारा आर्हती दीक्षा ग्रहण कर उनके शिष्य बने। मुनि श्री श्रीचन्दजी. आपका जन्म वि०सं० १९६८ में चान्दा (दक्षिण) में हुआ । २१ वर्ष की आयु में आप चान्दा में ही वि० सं० १९८९ में मुनि श्री चौथमलजी के कर-कमलों से दीक्षित हुये। मुनि श्री शान्तिलालजी आपका जन्म वि०सं० १९७१ में भरतपुर में हुआ। वि०सं० १९८९ में १८ वर्ष की आयु में निसरपुर में मुनि श्री शंकरलालजी के श्रीचरणों में आपने दीक्षा अंगीकार की। मुनि श्री कल्याणमलजी आपने वि०सं० १९९० में गंगार में युवाचार्य श्री छगनलालजी के शिष्यत्व में दीक्षा अंगीकार की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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