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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास श्री हीरालालजी के शिष्य कहलाये । वि०सं० १९७४ के किशनगढ़ चातुर्मास में आपने दो बेला, तीन तेला, एक चोला और ३१ दिन के उपवास किये और तपस्वी की उपाधि से विभूषित हुये । इसके अतिरिक्त आपने २०,२१,२४,२८, ४१,४३ दिन के भी उपवास किये थे। मुनि श्री मूलचन्दजी
आप आमेट के निवासी थे और मुनि श्री हीरालालजी के शिष्यत्व में दीक्षित हुये थे। इसके अतिरिक्त आपके सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। मुनि श्री नानकरामजी
आपका जन्म बहादुरपुर (अलवर) में हुआ। वि०सं० १९८८ में प्रवर्तक श्री हीरालालजी के शिष्यत्व में इन्दौर में आपने दीक्षा धारण की। मुनि श्री हुक्मीचन्दजी
आपका जन्म स्थान नीमच था। ऐसा उल्लेख मिलता है कि वि०सं० १९५९ मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा के दिन बड़े समारोह में १५ वर्ष की आयु में आपने दीक्षा ग्रहण की । अत: कहा जा सकता है कि आपका जन्म वि०सं०१९४४ में हुआ था। आप मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य थे। मुनि श्री शंकरलालजी . आपका जन्म वि०सं० १९४६ में मेवाड़ के धरियावद ग्राम में हुआ । वि०सं० १९६१ वैशाख वदि अष्टमी के दिन डुंगरे में आप दीक्षित हुये और मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य कहलाये। संस्कृत चन्द्रिका, लघुकौमुदी, सिद्धान्तकौमुदी, बाग्भटालंकार, नेमिनिर्वाण तथा अन्य काव्यादि का आपको अच्छा बोध था । अपनी विद्वता के कारण आप पण्डित की उपाधि से विभूषित थे । मुनि श्री कजोड़ीमलजी.
___आपका जन्म वि०सं० १९३६ में इन्दौर के मनासा ग्राम में हुआ। २८ वर्ष की उम्र में आपने अपनी पत्नी और एक पुत्र को त्यागकर वि०सं० १९६४ मार्गशीर्ष मास में दीक्षा ग्रहण की । आप मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य कहलाये। मुनि श्री छगनलालजी
आपका जन्म स्थान मन्दसौर था। आपका जन्म वि०सं० १९५३ में हुआ। वि०सं० १९६७ अगहन सुदि दशमी को आप करजू में आर्हती दीक्षा ग्रहण कर मुनि श्री चौथमलजी के शिष्य बने। आप शास्त्रों के अच्छे ज्ञाता थे । लघुसिद्धान्तकौमुदी, तर्क न्यायदीपिका, नेमिनिर्वाण तथा मेघदूत आदि का आपने तलस्पर्शी अध्ययन किया था।
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