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आचार्य हरजीस्वामी और उनकी परम्परा
४६१ आचार्य श्री रोड़मलजी
__ आपका जन्म कब और कहाँ हुआ, कब आपने दीक्षा ग्रहण की इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आप एक उग्र तपस्वी एवं उग्र विहारी थे। पूज्य श्री छगनलालजी के पश्चात् आप संघ के आचार्य मनोनित हुए। ४५ दिन के संथारे के साथ आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री प्रेमराजजी
आपका जन्म वि०सं० १९२४ ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को बिलाड़ा (जोधपुर जिलान्तर्गत) गाँव के निवासी श्री भेरुदासजी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती कुन्दनबाई था। बाल्यकाल में ही आपकी माता का देहावसान हो गया। तत्पश्चात् आप अपने पिता के साथ पूना के पास फूलगाँव चले आये । कुछ समयोपरान्त आपके पिताजी भी स्वर्गवासी हो गये । कम उम्र में ही आपने पिता के व्यापार को सम्भालना । इस कार्य में श्री तेजमलजी मूलचन्दजी बाम्बोरी वालों ने आपका पूर्ण सहयोग किया। एक दिन व्यापार के सिलसिले में आप अहमदनगर गये जहाँ पूज्य श्री छगनलालजी के वैराग्योत्पादक उपदेश ने आपके मन में घर कर लिया। फलतः वि०सं० १९४५ की पौष कृष्णा पंचमी दिन गुरुवार को आपने अहमदनगर में ही दीक्षा ग्रहण कर ली । आपके दीक्षा दाता आचार्य श्री छगनलालजी और दीक्षा गुरु तपस्वीराज श्री रोड़मलजी हुये। दीक्षोपरान्त आपने अपने गुरु के पास रहकर आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया।
२१, ३१, ४१, ४५, ५२, ५३ और ६७ दिनों की लम्बी-लम्बी तप श्रृंखलायें आप किया करते थे । लम्बी तपस्यायें और लम्बा विहार करने में आप विशेष रुचि रखते थे। ऐसा उल्लेख मिलता है कि आप बैठे-बैठे ही कुछ समय के लिए निद्रा ले लेते थे।
वि० सं० १९९६ में आपका चातुर्मास चिंचवड़ (महाराष्ट्र) में था। वही वि०सं० १९९७ ज्येष्ठ मास की अमावस्या की रात्रि में संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया।
आपके चार प्रमुख शिष्य थे- कर्णाटक केशरी श्री गणेशमलजी 'खादीवाले', श्री पृथ्वीराजजी, श्री जीवराजजी और श्री खेमचन्दजी। श्री गणेशमलजी के शिष्य खद्दरधारी श्री मिश्रीमल जी हुए और उनके शिष्य श्री संपतमुनिजी हुए। इसी प्रकार मुनि श्री जीवराजजी के तीन शिष्य हुए स्व० श्री कान्तिमुनिजी, श्री ऋषभमुनिजी और श्री कीर्तिमुनिजी।
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