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________________ ४५० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास पृथ्वीचन्दजी, उपाध्याय अमरमुनिजी आदि के साथ कुल २२ सन्त विराजमान थे। आप एक सरल वक्ता, साहित्यकार, कवि और तपस्वी थे। ऐसा उल्लेख मिलता है कि जैन समाज में महामन्त्र नमोकार के अखण्ड जाप का प्रारम्भ वि०सं० १९९२ के एलम चतुर्मास में आपने ही करवाया था। 'पण्डितरत्न श्री प्रेमचन्दमुनि स्मृति ग्रन्थ' में ऐसा उल्लेख आया है कि आपने आगम, सूत्र और सैद्धान्तिक ग्रन्थ, कथा, ढाल, चौपाई और चरित्र, तत्त्वचर्चा स्तोक और बोल-विचार, स्तोत्र, स्तुतियाँ, भजन, स्तवन, सिज्झाय और औपदेशिक पद्य-गद्य, ज्योतिष, वैद्यक, मन्त्र, तन्त्र और यन्त्र आदि प्रत्येक विघा पर अपनी लेखनी चलायी है जिनमें से बहुत-सी सामग्री आज विद्यमान है। वि०सं० २००८ वैशाख कृष्णा पंचमी से आगरा में आपका स्थिरवास हो गया। वि०सं० २०१६ चैत्र कृष्णा त्रयोदशी के दिन आप उपाध्याय श्री अमरमुनिजी आदि सन्तों के साथ लोहमण्डी से विहार कर मानपाड़ा पधारे जहाँ वि०सं० २०१७ वैशाख कृष्णा चतुर्थी को अचानक आपका स्वास्थ्य बिगड़ गया । वैशाख शुक्ला दशमी के दिन मध्याह्न में सवा बारह बजे आप स्वर्गस्थ हो गये। आपके तीन प्रमुख शिष्य थे- श्री प्रेमचन्द्रजी, श्री श्री चन्दजी और श्री हेमचन्द्रजी। पाँच प्रशिष्य हुये- श्री कस्तूरचन्दजी (प्रेमचन्दजी के शिष्य), श्री कीर्तिचन्दजी (श्री चन्दजी के ज्येष्ठ शिष्य), श्री उमेशचन्दजी (श्री हेमचन्द्रजी के ज्येष्ठ शिष्य) श्री सुबोधचन्द्रजी (श्री हेमचन्द्रजी के द्वितीय शिष्य) श्री महेन्द्रकुमारजी (श्री चन्दजी के द्वितीय शिष्य) । आप द्वारा किये गये चातुर्मासों की संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है स्थान संख्या Foru m r स्थान आगरा एलम महेन्द्रगढ़ करनाल बड़ौत हिसार झिंझाना मितलावली दोघट कुताना परासौली संगरूर दादरी बड़सत छपरौली बिनौली श्यामली काछुआ नारनौल पाटौदी जगराओ अम्बाला फरीदकोट कैथल सफीदोमण्डी रोहतक Frrrrr or or or or or or or or or or or or or or or Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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