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________________ ४४८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास १९२९ घूलियागंज (आगरा) १९३० श्यामली (मुजफ्फरनगर) १९३१ मोती कटरा (आगरा) १९३२ हिलवाड़ी (मेरठ) १९३३-३७ १९३८ ढिंढाली (मुजफ्फरनगर) मुनि श्री श्यामसुखजी आपका कोई परिचय उपलब्ध नहीं है मुनि श्री ऋषिराजजी आपका जन्म वि० सं० १९०८ चैत्र शुक्ला अष्टमी को आगरा के निकटवर्ती सोरई ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री चौधरी धनपत सिंह व माता का नाम श्रीमती अयोध्यादेवी था। आपके बचपन का नाम लेखराज था। अपने पिता एवं माता से दीक्षा की अनुमति लेकर आप पूज्य मुनि श्री कुँवरसैनजी के साथ वैरागी जीवन व्यतीत करने लगे। लगभग तीन वर्ष तक वैरागी जीवन व्यतीत करने के पश्चात् वि०सं० १९२६ मार्गशीर्ष कृष्णा अष्टमी दिन मंगलवार को हिलवाड़ी (मेरठ) में मुनि श्री कँवरसैनजी के कर-कमलों से आप दीक्षित होकर कुमार लेखराज से मुनि ऋषिराजजी हो गये। आप एक ओजस्वी प्रवचनकार, तेजस्वी चर्चावादी, सिद्धहस्त लेखक व साहित्यकार थे। आपकी विद्वता को देखते हुए लोग आपको पण्डितराज के नाम से सम्बोधित करते थे। आपने कई धार्मिक ग्रन्थों की रचना की है जिनमें से कुछ निम्न हैंसत्यार्थसागर, विवेकविलास, महिपाल चरित्र, महावीर चरित्र, प्रश्नोत्तरमाला, भूमिका, दिगम्बर मत चर्चा व तेरापन्थ मत चर्चा आदि। इनके अतिरिक्त भी आपने स्तोत्र, थोकड़े, बोल-विचार, आनुपूर्वी, गीत, स्तवन, सिज्झाय आदि की रचना भी की है। इनमें से कुछ अप्रकाशित व कुछ प्रकाशित हैं। आपके जीवन से कई चामत्कारिक घटनायें जुड़ी हैं जिनका वर्णन यहाँ सम्भव नहीं है। वि० सं० १९६४ पौष कृष्णा द्वितीया दिन शनिवार को सायं ४ बजे आप स्वर्गस्थ हये। आपके तीन प्रमुख शिष्य थे- श्री प्रेमराजजी, श्री प्यारेलालजी और श्री श्यामलालजी। आपने अपने ३८ वर्षीय संयमी जीवन में जितने चातुर्मास किये उनका संक्षिप्त वर्णन निम्न है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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