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________________ ४४६ __ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने आगमों का गहरा अध्ययन किया। आपने अपने संयम जीवन में अनेक टीकायें लिखी हैं। पूज्य रत्नचन्द्रजी के 'मोक्षमार्ग प्रकाश' का भाषान्तर आपने ही किया है। ६३ वर्ष की आयु में वि० सं० १९७३ आषाढ़ कृष्णा अष्टमी को दोघट में आप स्वर्गस्थ हुये। आपके तीन प्रमुख शिष्य हुये- श्री सुखानन्दजी, पं० श्री लालचन्दजी और तपस्वी श्री जस्सीरामजी। मुनि श्री सुखानन्दजी आपका जन्म वि०सं० १९३० के आस-पास आगरा के सन्निकट हुआ। वि०सं० १९४५ मार्गशीर्ष कृष्णा चतुर्थी को लश्कर में मुनि श्री भरताजी के शिष्यत्व में आपने आहती दीक्षा ग्रहण की। वि०सं० १९९७ मार्गशीर्ष कृष्णा एकादशी दिन शनिवार को सुल्तानगंज (बड़ौत) में आप स्वर्गस्थ हुए। सिद्धान्ताचार्य जैनधर्म दिवाकर पं० लालचन्दजी __ आपका जन्म वि०सं० १९४९ में हाथरस के सन्निकट सोरई (पेतखेडो, नामक ग्राम में हुआ । १४ वर्ष की अवस्था में आप वि०सं० १९६३ फाल्गुन कृष्णा पंचमी दिन रविवार को मुनि श्री भरताजी के शिष्य बने। आप संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं के साथ-साथ व्याकरण व ज्योतिष के अच्छे ज्ञाता थे। आपकी शास्त्रार्थ कला बेजोड़ थी। मुनि श्री भजनलालजी द्वारा लिखित 'दिव्य जीवन' नामक पुस्तक में ऐसा उल्लेख मिलता है कि वि० सं० १९९२ में मुज्जफ्फरनगर में आपने अपनी युक्ति, प्रमाण व तर्कों के आधार पर यह भलीभाँति सिद्ध कर दिया था कि मूर्तिपूजा जैनधर्म के विरुद्ध है। वि०सं० २००४ ज्येष्ठ कृष्णा चतुर्दशी दिन सोमवार तदनुसार ४ मई १९४७ को सुल्तानगंज बड़ौत में आप स्वर्गस्थ हुये । आपके तीन प्रमुख शिष्य हुयेपं० श्री विमलकुमारजी, मुनि श्री भजनलालजी और मुनि श्री विनयचन्दजी। मुनि श्री जस्सीरामजी आपका जन्म वि० सं० १९१२ में दोघट ग्राम के जाट कुल में हुआ। ५२ वर्ष की अवस्था में वि०सं० १९६४ में आपने मुनि श्री भरताजी के शिष्यत्व में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। १४ वर्ष तक संयमजीवन का पालन करते हुए वि०सं० १९७८ भाद्र शुक्लपक्ष में सुलतानगंज मंडी (बड़ौत) में आप स्वर्गस्थ हुये । मुनि श्री विमलकुमारजी. ____ आपका जन्म वि०सं० १९६७ में सोरई ग्राम में हुआ। वि० सं० १९७६ में मुनि श्री लालचन्दजी के सम्पर्क में आये और वि०सं० १९८१ आषाढ़ कृष्णा दशमी दिन रविवार को आप उन्हीं के कर-कमलों से दीक्षित हुये । आप संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेजी के अच्छे ज्ञाता थे। वि० सं० २०१६ मार्गशीर्ष कृष्णा षष्ठी दिन शनिवार को प्रात: ६ बजे जैन धर्मशाला, सब्जीमण्डी (आगरा) में आप स्वर्गस्थ हुये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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