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________________ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास ४४२ के बीच मुनि श्री हरजीमलजी के करकमलों से आप दीक्षित हुये। दीक्षोपरान्त आपने मनोहर गच्छ के ही मुनि श्री लक्ष्मीचन्द्रजी से आगमों का तलस्पर्शी अध्ययन किया। अपने कठोर परिश्रम से संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, हिन्दी, गुजराती, उर्दू, और फारसी जैसी अनेक भाषाओं में आप सिद्धहस्त हुये । आप आगम साहित्य के धुरन्धर विद्वान्, स्वमत - परमत के प्रकाण्ड पण्डित, काव्य कला के मर्मज्ञ कविरत्न, प्रभावक प्रवचनकार व सिद्धहस्त लेखक थे। आपने विपुल साहित्य की रचना की जिनमें से कुछ प्रमुख साहित्य इस प्रकार हैं- 'मोक्षमार्गप्रकाश', ' तत्त्वानुबोध', 'प्रश्नोत्तरमाला, बृहद् गुणस्थान विवरण, नवतत्त्वबालावबोध, 'दिगम्बर मतचर्चा, ' तेरापन्थ मतचर्चा, संवत्सरी चर्चा, सुखानन्दमनोरमा चरित्र, 'सगरचरित्र, 'इलायची कुंवर चरित्र, वैराग्य बारामासा', 'चमत्कार चिन्तामणि' 'ज्योतिष ग्रन्थ' आदि। इस साहित्य के अतिरिक्त आपने आध्यात्मिक और औपदेशिक तप, भक्ति स्तोत्र, स्तुतियाँ, प्रशस्तियाँ, पट्टावलियाँ, कविताएँ, दोहे, सवैये आदि पर्याप्त संख्या में बनाये थे जिनमें अधिकांश अप्रकाशित ही हैं । मुनि श्री की रचनाएँ रचना का नाम मुनि सुव्रत भगवान का स्तवन जीवाभिगमसूत्र जीवाभिगमसूत्र (अर्थ सहित) दशवैकालिकसूत्र (मूलपाठ) सूर्यपणती उपासकदशांगसूत्र कालज्ञान ( ज्योतिष ग्रन्थ) उववाई सूत्र, अणुत्तरोववाई (मूलपाठ व टब्बा) प्रद्युम्नचरित्र गजसुकुमाल चरित्र भगवतीसूत्र के चौबीसवें शतक का थोकड़ा दशबोल दुर्लभ की सज्झाय Jain Education International रचनाकाल वि०सं० १८६३ वि० सं० १८६६ वि०सं० १८६७ वि०सं० १८६८ वि०सं० १८६९ वि०सं० १८७३ वि०सं० १८७३ वि० सं० १८७४ वि०सं० १८७५ " वि०सं० १८७८ वि०सं० १८७९ For Private & Personal Use Only स्थान सिंधाणा ?? "" श्यामली के पास मालेरकोटला (पंजाब) बड़ौत आगरा जींद पंजाब पंजाब पटियाला सिंघाणा www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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