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________________ ४२६ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास मुनि श्री ताराचन्दजी के सेवा में थे। काकाजी की आज्ञा न होने के कारण मुनि श्री ने दीक्षा देने से इन्कार कर दिया और आपके न चाहते हुए भी आपके काकाजी को सूचित कर दिया गया कि आप लीम्बडी में विद्यमान हैं। यह जानकर आपके काकाजी एवं अन्य परिजन लीम्बड़ी पहुँच गये। आपको बहुत समझाया, किन्तु आप अपने विचार से तनिक भी अडिग नहीं हुए। अन्तत: वि०सं० १९८९ आश्विन शुक्ला दशमी को आपकी छोटी दीक्षा हुई और आप मुनि श्री किशनलालजी के शिष्य कहलाये। आप बाबूलाल से विनयमुनि हो गये। लीम्बड़ी चातुर्मास के पश्चात् आप उज्जैन पधारे जहाँ आपकी बड़ी दीक्षा हुई। दीक्षित होने के पश्चात् आपने गहन अध्ययन किया। आप एक कुशल प्रवचनकार थे। जीवन-साधना, जीवन-सौरभ, जीवन-लक्ष्य, जीवन-वैभव, जीवन-प्रेरणा, समाज दर्शन, धर्म-दर्शन, हम कैसे जीयें, सुख के स्रोत आदि के नाम से आपके प्रवचन संग्रह प्रकाशित हैं। इनके अतिरिक्त आपने कुछ ग्रन्थों का संग्रह भी किया था जो दोहा-पीयूष संग्रह, पंक्ति-संग्रह, सूक्ति-सरोज आदि के नाम से संग्रहित हैं। आपके दो शिष्य हए- श्री शान्तिमुनिजी और श्री प्रमोदमुनिजी 'मधु'। वि०सं० २०२९ मार्गशीर्ष शुक्ला द्वितीया को वोरीवली (मुम्बई) में आपका स्वर्गवास हो गया। गण के अन्य सन्त. १. मुनि श्री सागरमुनिजी - आपका जन्म पेटलावद के समीप करडावद में हुआ। दीक्षा वि०सं० १९८७ आषाढ़ कृष्णा सप्तमी दिन बुधवार को बदनावर में हुई। आप श्री सौभाग्यमलजी के शिष्य हुए। २. मुनि श्री सुरेन्द्रमुनि- आपका जन्म वि०सं० १९८२ को आगर में हुआ। दीक्षा वि० सं० १९९६ कार्तिक सुदि द्वादशी को हैदराबाद में ग्रहण की। आप श्री सूर्यमुनि जी के शिष्य हुए। ३. मुनि श्री. हुकममुनिजी. - आपका जन्म राजगढ़ में हुआ। वि०सं० २००१ माघ शुक्ला पंचमी को खाचरौंद में आपकी दीक्षा हुई। आप श्री सौभाग्यमलजी के शिष्य हुए। ४. मुनि श्री. मगनमुनिजी - आपका जन्म बिडवाल में हुआ। वि०सं० २००२ वैशाख कृष्णा दशमी को बदनावर में आपकी दीक्षा हुई। आप श्री सौभाग्यमलजी के शिष्य हुये। ५. मुनि श्री रूपेन्द्रमुनिजी - आपका जन्म मध्य प्रदेश के आगर नगर में हुआ। वि०सं० २००३ वैशाख शुक्ला एकादशी को कतवारा में आपकी दीक्षा हुई। आप श्री सूर्यमुनिजी के शिष्य हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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