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________________ ३९८ स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास था और धर्मोपदेश द्वारा उन्हें सनमार्ग दिखाया। आपसे प्रभावित होकर राजा राणोंजी ने मद्यमांस भक्षण आदि का त्याग कर दिया था। आचार्य श्री ने ५४ वर्ष तक संयम-पर्याय का पालन कर वि०सं० १८०३ में उज्जैन में समाधिपूर्वक महाप्रयाण किया। आचार्य श्री माणकचन्दजी __मालवा परम्परा की उज्जैन शाखा के आप आचार्य श्री रामचन्द्रजी के पश्चात् दूसरे आचार्य हुए। आपकी दीक्षा शाजापुर में वि०सं० १७९५ में हुई। वि०सं० १८५० भाद्र शुक्ला एकादशी के दिन आपका स्वर्गवास हुआ। आपके चार शिष्यों के नाम उपलब्ध होते हैं- १. श्री देवाऋषिजी २. श्री जोगाऋषिजी ३. श्री चमनाऋषिजी और श्री अमीचन्दऋषिजी। इससे अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आचार्य श्री. दल्लाजी आचार्य श्री माणकचन्द्रजी की पाट पर तीसरे आचार्य के रूप में मुनि श्री दल्ला जी विराजमान हुए। वि०सं० १८६९ में आपने संघ की मर्यादा निर्धारित की थी। आपके विषय में इससे अधिक सूचना उपलब्ध नहीं होती है। आचार्य श्री चमनालालजी. आचार्य श्री दल्लाजी के पाट पर चौथे आचार्य के रूप में आचार्य श्री चमनालाल जी बैठे। आपकी दीक्षा वि०सं० १८३२ चैत्र शुक्ला तृतीया सोमवार को आचार्य श्री माणकचन्दजी के सन्निध्य में हुई। इसके अतिरिक्त कोई विशेष सूचना आपके विषय में प्राप्त नहीं होती है । हाँ ! आपकी विद्यमानता के विषय में मुनिश्री मोतीचन्दजी द्वारा की गयी स्तुति से पता चलता था कि आप वि०सं० १८७३ तक विद्यमान थे। आचार्य श्री नरोत्तमदासजी ___आप उज्जैन शाखा के पाँचवें आचार्य हुए। आपके विषय में मात्र इतनी जानकारी उपलब्ध होती है कि आपने वि०सं० १८४१ ज्येष्ठ कृष्णा प्रतिपदा दिन वृहस्पतिवार को दीक्षा ग्रहण की थी। मेघमनिचरित्र प्रशस्ति से यह ज्ञात होता है कि आपने बारह वर्ष तक लेटकर कभी नींद नहीं ली। आप योग-साधना पर विशेष ध्यान माणकचन्दजी के पाटवी राजत,पुज चमनाजी छे हितकारे। पंडतराजजी गुण का दरिया चतुरसंघ ने बहुत प्यारे ॥ एक-एक थी गुणज अधिका, साल रुखने परिवारे । दुख दलिद्दर मिट जावे, मुख देख्यां उतरे भव पारे । उद्धृत- 'श्रीमद् धर्मदासजी और मालव शिष्य परम्परायें', पृ०- १०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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