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________________ ३८० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास आपका चातुर्मास क्षेत्र पीपाड़, भोपालगढ़, बालोतरा, अहमदाबाद, जयपुर, पाली, नागौर, मेड़ताशहर, जोधपुर, कोसाणा, जयपुर, सवाईमाधोपुर, ब्यावर, अजमेर, इन्दौर, जलगाँव, मद्रास, रायपुर आदि नगर रहे। बालोतरा चातुर्मास में आपकी प्रेरणा से ५०० युवाओं ने नशीले पदार्थों का त्याग किया। वि०सं० २०४७ में आप गुरुदेव के पाली चातुर्मास में उनके साथ थे। वर्तमान में आपके साथ कुल ६६ सन्त एवं संतियाँ हैं जिनमें सन्तो की संख्या-१३ तथा महासतियाँजी की संख्या-५३ है। मुनिराजों के नाम हैं- पं० रत्न उपाध्याय श्री मानचंद्रजी, श्री महेन्द्रमुनिजी , श्री नन्दीषेणमुनिजी, श्री प्रमोदमुनिजी, श्री मंगलमुनिजी, श्री कपिलमुनिजी, श्री योगेशमुनिजी, श्री मनीषमुनिजी, श्री यशवंतमुनिजी, श्री गौतममुनिजी, श्री प्रकाशमुनिजी, श्री वसन्तमुनिजी। उपाध्याय श्री. मानचन्द्रजी आपका जन्म वि०सं० १९९१ माघ कृष्णा चतुर्थी को जोधपुर की सूर्यनगरी में हुआ। आपके पिता का नाम श्री अंचलचन्दजी सेठिया और माता का नाम श्रीमती छोटाबाई सेठिया है। वि० सं० २०२० वैशाख शुक्ला त्रयोदशी को पंडितरत्न लक्ष्मीचन्द्रजी (बड़े) की निश्रा में आचार्य श्री हस्तीमलजी के शिष्यत्व में आप दीक्षित हुये। आप आगमों के गहन अध्येता हैं। संस्कृत, प्राकृत, पालि, अंग्रेजी और गुजराती आदि भाषाओं का उत्तम ज्ञान है। वि०सं० २०४८ वैशाख शुक्ला नवमी तदनुसार २२ अप्रैल १९९१ में आप रत्नवंश के प्रथम उपाध्याय पद पर सुशोभित हुये। आप रत्नवंश के ज्येष्ठ एवं वरिष्ठ सन्त रत्न हैं। स्वभाव से आप निरभिमानी, मधुर व्याख्यानी, शान्त व सरल हैं। राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र हैं। मुनि श्री शीतलराजजी / शीतलदासजी, आपका जन्म वि० सं० २००४ चैत्र वदि अष्टमी तदनुसार दिनांक १९ जनवरी १९४८ को सूर्यनगरी जोधपुर में हुआ। आप श्री मदनराजजी सिंघवी व श्रीमती भीमकुंवरजी के पुत्ररत्न हैं । वि०सं० २०२६ माघ सुदि त्रयोदशी तदनुसार दिनांक १८ फरवरी १९७० को जोधपुर के पावद्य में आचार्य प्रवर श्री हस्तीमलजी के श्री चरणों में आपने भगवती दीक्षा ग्रहण की। आप आगमों के गहन अध्येता हैं। संस्कृत, प्राकृत, पालि, हिन्दी, गुजराती व अंग्रेजी आदि भाषाओं पर आपका समान अधिकार है। ऐसा कहा जाता है कि जिस रात्रि में आपकी छोटी बहन की शादी हुई उसी रात्रि उसी मण्डप में प्रात:काल आपने दीक्षा ग्रहण की। संयमपर्याय धारण करने के पश्चात् आज तक आप सर्दी, गर्मी और बरसात सभी मौसम में एक ही चादर चोल पट्टा रखते हैं। वि० सं० २०२८ से ही आपने आड़ा आसान नहीं करना, लेटकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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