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________________ २०१० १९९४ धर्मदासजी की पंजाब, मारवाड़ एवं मेवाड़ की परम्पराएं वि०सं० स्थान वि०सं० स्थान १९८८ कालू आणंदपुर २००७ जेतरान १९८९ सहवाज २००८ मादलिया १९९० कालू आणंदपुर २००९ सादड़ी १९९१ जोधपुर बीलाड़ा १९९२ सोजतशहर २०११ सीवाणा १९९३ टाँटोटी २०१२ सहवाज जोधपुर २०१३ कुसालपुरा १९९५ सोजतशहर २०१४ सोजतशहर १९९६ केसरसिंहजी का गुढ़ा २०१५ ब्यावर १९९७ बीलाडा २०१६ सादड़ी (मारवाड़) १९९८ बुसो २०१७ खवासपुरा १९९९ बुसी-सकारन २०१८ सोजतशहर २००० सिरियारी २०१९ जोधपुर २००१ जैतरान २०२० सांडेराव २००२ २०२१ कोटड़ा २००३ सोजतशहर २०२२ चावण्डिया २००४ सादड़ी (मारवाड़) २०२३ निबाज २००५ बगड़ी सज्जनपुर २०२४ २००६ कुरड़ाया आगे की सूची प्राप्त नहीं हो सकी है। प्रवर्तक श्री रूपचन्द्रजी 'रजत' आपका जन्म वि०सं० १९८५ श्रावण शुक्ला दशमी के दिन पाली (राजस्थान) के नाडोल ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम श्री भेरुपुरीजी व माता का नाम श्रीमती मोतीबाई था। आपने कविवर्य स्वामी श्री मोतीलालजी के हाथों आहती दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री मोतीलालजी श्रमणसूर्य श्री मरुधरकेसरीजी के चाचागुरु थे। दीक्षित होने के पश्चात् आपने आगम, व्याकरण, न्याय, दर्शन, ज्योतिष आदि के ग्रन्थों का अध्ययन किया। भाषाओं में आपको प्राकृत, संस्कृत, पालि, हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि का विशेष ज्ञान है। आप राजस्थानी के एक अच्छे साहित्यकार, लेखक व कवि हैं। सामान्यतया आप स्पष्ट वक्ता जाने जाते हैं। ई०सन् १९८७ एवं २००१ में क्रमश: पूना और दिल्ली में आयोजित आचार्य पद चादर महोत्सव को सफल बनाने में आपकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्तमान में राजस्थान में आपके निर्देशन में सैकड़ों जोधपुर गोठन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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