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________________ ३५० स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास टोडरमलजी आपके जीवन के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। इतना ज्ञात होता है कि आपके सतरह शिष्य हुये, जिनमें इन्द्रराजजी और भेरुदासजी प्रमुख थे। (आगे की शिष्य परम्परा के लिये सारिणी देखें।) श्री बुधमलजी स्थानकवासी जैन परम्परा में आप का नाम बड़े ही आदर और सम्मान से लिया जाता है। आपका जन्म वि०सं० १९२४ श्रावण पूर्णिमा को भरतपुर में हुआ। आपके पिता का नाम श्री हीरालालजी छाजेड़ (बडे साजन) व माता का नाम श्रीमती चम्पादेवी था। १४ वर्ष की उम्र में आपके मन में वैराग्य अंकुरित हुआ। १५ वर्ष की आयु में वि०सं० १९३९ में आपने मुनि श्री मानमलजी के शिष्यत्व में दीक्षा अंगीकार की। आप समयानुकूल उपवास बेला, तेला आदि किया करते थे। ऐसा कहा जाता है कि आपने २१ बार अट्ठाईयाँ की थीं। आपके तीन शिष्य थे- श्री जयवन्तमलजी, श्री धूलचन्द्रजी और मरुधरकेसरी श्री मिश्रीमलजी। इनमें से श्री जयवन्तमलजी और श्री धूलचन्दजी की परम्परा नहीं चली और ये दोनों शिष्य आपकी उपस्थिति में ही देवलोक हो गये थे। ६१ वर्ष की आयु में ४३ वर्ष तक संयमजीवन व्यतीत करने के उपरान्त वि० सं० १९८५ पौष कृष्णा प्रतिप्रदा को राजस्थान के कुरड़ाया (बुधनगर) नामक ग्राम में आप स्वर्गस्थ हुये। मरुधरकेसरी मुनि श्री मिश्रीमलजी (कड़कमिश्री) __ आपका जन्म वि०सं० १९४८ श्रावण शुक्ला चतुर्दशी दिन मंगलवार को राजस्थान के पाली में हुआ। आपके पिता का नाम श्री शेषमलजी सोलंकी मेहता व माता का नाम श्रीमती केसरकुंवर था। वि०सं० १९७५ अक्षयतृतीया के दिन सोजत सिटी में गुरुवर्य श्री बुधमलजी के श्रीचरणों में आपने आहती दीक्षा ग्रहण की। दीक्षोपरान्त आपने आगम, ज्योतिष, व्याकरण, न्याय, साहित्य, छन्द, अलंकार, आदि विषयों का गहन अध्ययन किया। गुरुवर्य श्री बुधमलजी के महाप्रयाण पश्चात् संघ की पूरी जिम्मेदारी आपके ऊपर आ गयी। वि०सं० १९९० में आप संघ के मंत्री पद पर आसीन हुये। वि०सं० १९९३ में आप जैनसंघ द्वारा 'मरुधरकेसरी' विभूषण से अलंकृत हये। वि०सं० २०२५ में आप श्रमणसंघ के प्रवर्तक पद पर शोभायमान हुये। वि०सं० २०३३ में आपको 'श्रमण सूर्य' की पदवी से सम्मानित किया गया। आप ने पाँच हजार पृष्ठ से भी अधिक गद्य-पद्य साहित्य का निर्माण किया है। 'रामायण' एवं 'पाण्डव चरित्र' ऐसे दो महाकाव्यों की रचना भी की है। आप द्वारा रचित साहित्य निम्नलिखित हैं - १. पाण्डव यशोरसायन (जैन महाभारत) , २. मरुधरा के महान संत (४ चरित्र) ३. संकल्प विजय (३५ (चरित्र), ४. सच्ची माता का सपूत (गजसिंह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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