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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास की ओर विहार करते हुये जालना पधारे। वहीं आपने चातुर्मास किया। जालना चातुर्मास का वर्ष तो ज्ञात नहीं है, किन्तु उल्लेख के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वि०सं० १९८४ का चातुर्मास जालना में हुआ होगा। जालना में ही वि०सं० १९९१ में आपका स्वर्गवास हुआ।
तिलोकऋषिजी की शिष्य परम्परा मुनि श्री भवानीऋषिजी
आपके विषय में जो जानकारी मिलती है वह इतनी है कि आप मुनि श्री तिलोकऋषिजी की निश्रा में वि०सं० १९३३ मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी के दिन मालवा प्रान्त के रतलाम में दीक्षित हये। वि०सं० १९३४ और वि०सं० १९३५ का चातुर्मास आपने मुनि श्री तिलोकऋषि के साथ किया। तदुपरान्त किसी विषय को लेकर गुरुवर्य से आपका मतभेद हो गया और आप गुरुवर्य से पृथक् विहार करने लगे। मुनि श्री प्याराऋषिजी
___ आपका जन्म मालवा में हुआ। वि० सं० १९३४ चैत्र शुक्ला द्वादशी को मम्मटखेड़ा गाँव में मुनि श्री तिलोकऋषिजी के सान्निध्य में आपकी छोटी दीक्षा हुई। छोटी दीक्षा के छ: महीने पश्चात् बड़ी दीक्षा हुई। वि०सं० १९४० में गुरु महाराज का (श्री तिलोकऋषिजी का) स्वर्गवास होने के पश्चात् आप मुनि श्री रत्नऋषिजी के साथ मालवा में पधारे जहाँ आपका स्वर्गवास हो गया। स्वर्गवास तिथि ज्ञात नहीं है। मुनि श्री स्वरूपऋषिजी
आप मूलत: मारवाड़ के बोता ग्राम के रहनेवाले थे, किन्तु व्यापार के निमित्त मानक दौंडी (अहमदनगर) में रहने लगे थे। आपने वि०सं० १९३५ में घोड़नदी में मुनि श्री तिलोकऋषिजी के दर्शन किये। उनके मार्मिक उपदेश से आपके मन में वैराग्य की भावना उत्पन्न हुई। वि० सं० १९३६ आषाढ़ शुक्ला नवमी को आप दोनों पिता-पुत्र मुनि श्री तिलोकऋषिजी की निश्रा में दीक्षित हुये और आप मुनिद्वय श्री स्वरूपऋषिजी और श्रीरत्नऋषिजी के नाम से जाने जाने लगे। दक्षिण प्रदेश में आपका स्वर्गवास हो गया। मुनि श्री रत्नऋषिजी
___आपका जन्म वि० सं० १९२४ में हुआ। आप मुनि श्री स्वरूपऋषिजी के संसारपक्षीय पुत्र थे। आपकी माता का नाम श्रीमती धापूबाई था। वि०सं० १९३६ में आप अपने पिता के साथ दीक्षित हुये। वि०सं० १९४० में गुरुवर्य के वियोग के पश्चात् आप रतलाम पधारे जहाँ आपके सन्निध्य में श्री वृद्धिचंदजी ने दीक्षा ग्रहण की। आपने रिंगनोद में अपना प्रथम स्वतन्त्र चौमासा किया। तत्पश्चात् प्रतापगढ़, धरियावद, मनमाड में चौमासे किये। वि०सं० १९४० से १९५५ तक के चौमासे के जानकारी उपलब्ध नहीं हो पायी
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