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________________ २६९ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा 'जैन शिक्षा' ( छ: भाग में), 'व्याख्यान वाटिका', 'जैन तत्त्व का नूतन निरूपण', 'अहिंसा का राजमार्ग', 'अहिंसा पथ', 'तत्त्वसंग्रह', 'आत्मबोध भाग १-३', 'साहित्य सागर के मोती', 'जीवन सुधार की कुंजी' आदि। मुनि श्री मनसुखऋषिजी. आपका जन्म कब और कहाँ हुआ? आपके माता-पिता का नाम क्या था? ज्ञात नहीं है। आपके विषय में इतना ज्ञात होता है कि आपने मुनि श्री मोहनऋषिजी के उपदेशों से प्रतिबोधित हो दीक्षा ग्रहण की थी। खानदेश और महाराष्ट्र आपके विहार क्षेत्र रहे। आपके एक शिष्य हुये- श्री मोतीऋषिजी। मुनि श्री मोतीऋषिजी आपका जन्म अहमदनगर के खांवा में वि०सं० १९७४ में हुआ। वि०सं० २०१० फाल्गुन कृष्णा एकादशी को येलदा में आप दीक्षित हुए। मुनि श्री मनसुखऋषिजी से किसी कारणवश कुछ मन मुटाव हो गया और आप उनसे अलग हो गये। मुनि श्री विनयऋषिजी. आपका जन्म वि०सं० १९५५ भाद्रपद कृष्णा सप्तमी के दिन गुजरात के कलोल नामक ग्राम में हुआ। वि० सं० १९७६ वसंत पंचमी के दिन आप मुनि श्री दौलतऋषिजी की निश्रा में दिल्ली में दीक्षित हुये। आप पहले वाडीलाल के नाम से जाने जाते थे। दीक्षोपरान्त आपका नाम विनयऋषि हो गया। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती आदि भाषाओं के मर्मज्ञ थे। दीक्षित होने के उपरान्त आपने 'दशवैकालिक और 'उत्तराध्ययन' को कंठस्थ कर लिया था। आप मुनि श्री मोहनऋषिजी के संसारपक्षीय सहोदर थे। गुजरात, काठियावाड़, मेवाड़, मारवाड़, मालवा, बरार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र रहे हैं। मुनि श्री फतहऋषिजी. आप मुनि श्री प्रेमऋषिजी की निश्रा में दीक्षित हुये। इसके अतिरिक्त कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आप स्वर्गस्थ हो चुके हैं। मुनि श्री चौथऋषिजी आपका जन्म कब और कहाँ हुआ?आपके माता-पिता का नाम क्या था? आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आपकी दीक्षा मुनि श्री दौलतऋषिजी के मुख से हुई और आप मुनिश्री प्रेमऋषिजी के शिष्य कहलाये। गुरुवर्य की सेवा में रहकर आपने शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया। वि० सं० १९८२ में आप और मुनि रत्नऋषिजी दक्षिण प्रान्त के चिंचवड़ ग्राम में मुनि श्री अमोलकऋषिजी की सेवा में रहे और वि०सं० १९८३ का चातुर्मास उन्हीं के साथ पूना में किया। पूना के चातुर्मास के उपरान्त आप श्री निजाम स्टेट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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