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स्थानकवासी जैन परम्परा का इतिहास
मासखमण किया था। अजमेर से आप विजयनगर पधारे जहाँ अकस्मात आषाढ़ कृष्णपक्ष में आपका स्वर्गवास हो गया ।
मुनि श्री समर्थऋषिजी
आप मूलतः मारवाड़ के खींचन के रहनेवाले थे। व्यापारिक दृष्टि से आप मध्य प्रदेश के सिवनी नगर में रहते थे। वि० सं० १९८५ में मुनि श्री देवजीऋषिजी के सान्निध्य में आपने दीक्षा ग्रहण की और मुनि श्री सखाऋषिजी की निश्रा में शिष्य बने । दीक्षा के समय आपकी आयु ३० वर्ष थी, अत: आपका जन्म वि०सं० १९५५ के आसपास हुआ होगा। तपश्चर्या में आपकी विशेष रुचि थी। आप एकान्तर बेला, तेला, पंचोला, अट्ठाई, ग्यारह, पन्द्रह आदि की तपस्या प्राय: करते रहते थे। अजमेर बृहत्साधु सम्मेलन के उपरान्त आप पूज्य श्री अमोलकऋषिजी की सेवा में रहने लगे। उनके साथ मारवाड़, दिल्ली, पंजाब आदि प्रान्तों में विहार किया । वि० सं० १९९३ भाद्रपद शुक्ला नवमी के दिन धुलिया में आपका स्वर्गवास हो गया ।
मुनि श्री कान्तिऋषिजी
आपका जन्म मेवाड़ के शाहपुरा रियासत में हुआ | आपके माता-पिता का नाम उपलब्ध नहीं होता है और न जन्म-तिथि उपलब्ध होती है। दीक्षा पूर्व आपका नाम श्री दलेल सिंह था। वि० सं० १९८५ में आपको और आपके पुत्र दोनों को मुनि श्री देवजीऋषिजी का सान्निध्य प्राप्त हुआ । चार वर्ष बाद वि०सं० १९८९ मार्गशीर्ष शुक्ला त्रयोदशी के दिन शुजालपुर में शास्त्रोद्धारक पूज्य श्री अमोलकऋषिजी के मुखारविन्दु से दोनों पिता-पुत्र ने आर्हती दीक्षा धारण की और मुनि श्री सखाऋषिजी की निश्रा में शिष्य बने। आपके पुत्र अक्षयऋषिजी के नाम से जाने जाते थे। मालवा, बरार और मध्य प्रदेश आपका विहार क्षेत्र रहा है। धुलिया में आप मुनि श्री माणकऋषिजी के साथ स्थिरवास में थे। इसके अतिरिक्त आगे की जानकारी उपलब्ध नहीं है।
मुनि श्री चेनाऋषिजी
आपका जन्म कब और कहाँ हुआ, आपके माता-पिता का नाम क्या था आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं होती है। आप मुनि श्री खूबाऋषिजी के शिष्य थे। उन्हीं से आपने शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त किया था । तपाराधना में आपकी विशेष रुचि थी। आपने अपने संयमी जीवन में प्रकीर्णक, थोक तपस्या, मासखमण, अर्द्धमासखमण, दो मासखमण, तीन मासखमण आदि बड़ी-बड़ी तपस्यायें की थीं। वृद्धावस्था में मुनि श्री अमोलकऋषि जी आपकी सेवा में उपस्थित रहे। वि० सं० १९४५ में शुजालपुर में संथापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया।
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