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आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा
२४५ करके वि०सं० १९६३ चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को हैदराबाद में प्रवेश किया। मुनि श्री केवलऋषिजी की अस्वस्थता के कारण आपको ९ वर्ष तक लगातार हैदराबाद में चौमासा करना पड़ा । वहीं पर मुनि श्री केवलऋषिजी का स्वर्गवास हो गया। श्री देवजीऋषिजी, श्री राजऋषिजी और श्री उदयऋषिजी की दीक्षा सम्पन्न कर आप सिकन्दराबाद पधारे । वहाँ तीन चातुर्मास किये। आपने मात्र तीन वर्षों में ३२ आगमों का अनुवाद किया- ऐसा उल्लेख मिलता है । प्रतिदिन एकासना की तपश्चर्या करते हुए सात-सात घण्टे तक आप अबाध गति से लिखते रहते थे। अर्धमागधी भाषा में निबद्ध आगमों का हिन्दी अनुवाद कर सामान्य जनों के लिये पठनीय बनाने में आपका सराहनीय योगदान रहा है। आपकी कृति को प्रकाशित कर जनसामान्य तक पहुँचाने में लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी का योगदान भी सराहनीय है।
वि०सं० १९७२ में आपके सान्निध्य में श्री मोहनऋषिजी की दीक्षा हुई, किन्तु अल्पायु में ही वि० सं० १९७५ में उनका स्वर्गवास हो गया। आप हैदराबाद से कर्नाटक स्पर्श करते हुए रायचूर पधारे । रायचूर चौमासा करके बैंगलोर पधारे। दो चौमासा आपने बैंगलोर में किये तत्पश्चात् गुरुवर्य रत्नऋषिजी की सूचना पाकर आप करमाला पधारे जहाँ रत्नऋषिजी विराजमान थे। वि०सं० १९८१ का चातुर्मास आपका करमाला में ही हआ। वहाँ से विहार कर कुड़गाँव पधारे जहाँ मुनि श्री कल्याणऋषिजी की दीक्षा आपके सान्निध्य में हुई । वहाँ से आप घोड़नदी पधारे जहाँ श्री सुल्तानऋषिजी को आपने दीक्षित किया। वहाँ से आप पूना और अहमदनगर का चातुर्मास करते हुये धुलिया पधारे । उसी समय बोधवड़ से विहार कर मुनि श्री आनन्दऋषिजी भी धुलिया पधारे। वहाँ दोनों सन्तों का मधुर समागम हुआ। वि०सं० १९८९ ज्येष्ठ शुक्ला द्वादशी दिन गुरुवार को इन्दौर श्रीसंघ द्वारा आप आचार्य पद पर मनोनित किये गये। आपसे पूर्व इस सम्प्रदाय में आचार्य पद नहीं दिया जाता था। हाँ ! संघ का एक प्रमुख होता था जिसके निर्देशन में संघ चलता था। अजमेर सम्मेलन में आपने सम्प्रदाय समागम में अद्वितीय भूमिका निभायी। सम्मेलन के पश्चात् आपका चातुर्मास सादड़ी में सम्पन्न हुआ। वहाँ से पंचकूला, शिमला आदि को स्पर्श करते हुए पंजाब प्रान्तीय क्षेत्रों में विहार किया और दानवीर बहादुरलाल सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी के निवास स्थान महेन्द्रगढ़ में चातुर्मास किया। वि०सं० १९९२ में आपने दिल्ली में चौमासा किया। वहाँ से आप कोटा, बून्दी, रतलाम, इन्दौर आदि क्षेत्रों का स्पर्श करते हुए धुलिया पधारे । वि०सं० १९९३ में प्रथम भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी को संथारापूर्वक आपका स्वर्गवास हो गया। आपके द्वारा रचित एवं अनूदित ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है
'जैन तत्त्वप्रकाश', 'परमात्ममार्गदर्शक', 'मुक्तिसोपान (गुणस्थान ग्रन्थ), 'ध्यानकल्पतरु', 'धर्मतत्त्व संग्रह', 'सद्धर्म बोध', 'सच्ची संवत्सरी', 'शास्त्रोद्धार मीमांसा', 'तत्त्वनिर्णय', 'अधोद्धार कथागार', 'जैन अमूल्य सुधा', 'श्री केवलऋषिजी' (जीवनी),
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