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वि०सं०
१९२०
१९२१ १९२२ १९२३ १९२४
आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा स्थान वि० सं० बडाबदा १९३० शुजालपुर
१९३१ शुजालपुर
१९३२ मन्दसौर
१९३३ जीवागंज
१९३४
१९३५ शुजालपुर
१९३६
१९३७ रतलाम
१९३८ शाजापुर
१९३९ घरियाबाद
१९४०
स्थान मन्दसौर शाजापुर शुजालपुर रतलाम जावरा घोड़नदी अहमदनगर बाम्बोरी घोड़नदी अहमदनगर अहमदनगर
१९२५
कोटा
१९२६ १९२७
१९२८
१९२९
आचार्य श्री अमीऋषिजी
पूज्य श्री तिलोकऋषिजी के पश्चात् मालवा की ऋषि परम्परा के पाट पर अमीऋषिजी विराजित हए। आपका जन्म वि० सं० १९३० में दलोदा (मालवा) निवासी श्री भैरुलाल जी के यहाँ हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती प्याराबाई था। १३ वर्ष की उम्र में वि०सं० १९४३ मार्गशीर्ष कृष्णा तृतीया को मगरदा (भोपाल) में पूज्य श्री तिलोकऋषिजी के सानिध्य में आपकी दीक्षा हुई और श्री सुखाऋषिजी के शिष्य कहलाये। आप विलक्षण प्रतिभा के धनी तथा इतिहास,दर्शन आदि विषयों के गहन अध्येता थे। अपने विरोधियों को आपने आगमिक प्रमाण के आधार पर कई बार परास्त किया था। संयम और तप के प्रति आप सदा जागरुक रहते थे । स्वभाव से बड़े शान्त और धैर्य प्रकृति के थे। ऐसा उल्लेख मिलता है कि आप एक बार वागड़ पधारे। वहाँ आहार-पानी का सयोग न मिल पाने के कारण आपने आठ-आठ दिन तक छाछ में आटा घोलकर पीया था। काव्य में भी आपकी विशेष रुचि थी। वि० सं० १९८२ में दक्षिण महाराष्ट्र में ऋषि सम्प्रदाय के संगठन के लिए आपने अथक प्रयास किया। सूरत सम्मेलन में भी आप उपस्थित थे। वि० सं० १९८८ वैशाख शुक्ला चतुर्दशी को शुजालपुर (मालवा) में आपका स्वर्गवास हो गया। आपकी बहुत-सी रचनायें हैं जो आज भी सन्त-सतियों के पास उपलब्ध हैं। आपकी रचनाओं का संग्रह पूज्य आचार्य आनन्दऋषिजी ने किया था। वह संग्रह प्रकाशित भी हुआ है। आपकी कुछ रचनायें निम्नलिखित हैं- १. 'स्थानक निर्णय २. 'मुखवस्त्रिका निर्णय' ३. 'मुखवस्त्रिका चर्चा' ४. 'श्री महावीर प्रभु के छब्बीस भव' ५. 'श्री प्रद्युमचरित' ६. 'श्री पार्श्वनाथचरित' ७. 'श्री सीताचरित' ८. 'सम्यक्त्व महिमा' ९.
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