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________________ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा २३१ वासुदेवजी उपाध्याय तथा माता का नाम श्रीमती नंदकलादेवी उपाध्याय है। आप उपाध्याय डॉ० विशालमुनिजी के अनुज हैं। ३ मार्च १९७६ को आपने मेरठ (उत्तर प्रदेश) के अमीनगर सराय में श्रमण संघीय सलाहकार तपस्वीरत्न श्री सुमतिप्रकाशजी द्वारा आर्हती दीक्षा ग्रहण की और उपाध्याय प्रवर डॉ० श्री विशालमुनिजी के शिष्य कहलाये । संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, नेपाली, अंग्रेजी, मराठी आदि भाषाओं में आपकी अच्छी पहुँच है। सम्पूर्ण भारत में सर्वप्रथम प्रश्न मंच कार्यक्रम का प्रारम्भ आपने ही किया है। इससे पहले कोई इस तरह का प्रश्न मंच कार्यक्रम नहीं करता था, ऐसी मान्यता है । उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक आदि प्रान्त आपके विहार क्षेत्र हैं। आपके छः शिष्य हैं- मुनि श्री उत्तममुनिजी, मुनि श्री पदममुनिजी, मुनि श्री उदितमुनिजी, मुनि श्री गौतममुनिजी, मुनि श्री प्रबुद्धमुनिजी, मुनि श्री परागमुनिजी, मुनि श्री गगनमुनिजी। मुनि श्री उत्तममुनिजी. __ आपका जन्म नेपाल के जीमीरे ग्राम में हुआ। वि०सं० २०३९ वैशाख सुदि तृतीया (अक्षय तृतीया) तदनुसार २८ अप्रैल १९८२ को मुनि श्री विचक्षणमुनिजी के शिष्यत्व में आपने अमीनगर सराय में आर्हती दीक्षा ग्रहण की। मुनि श्री पदममुनिजी आपका जन्म १८ फरवरी १९७६ को नेपाल में हुआ। आपके पिता का नाम श्री कृष्ण उपाध्याय और माता का नाम श्रीमती तारादेवी है। ७ मई १९९५ को आपने तपस्वीरत्न जयोतिर्धर सन्त मनि श्री समतिप्रकाशजी के श्री चरणों में आप दीक्षित हुये और मुनि श्री विचक्षणमुनिजी के शिष्य कहलाये। 'मैं पल दो पल का शायर हूँ', 'मुस्कुराते स्वर' और 'गन्तव्य की ओर' आपकी रचनायें प्रकाशित हैं मुनि श्री अचलमुनिजी आपका जन्म नेपाल के आरुखर्क नामक ग्राम में हुआ। ७ फरवरी १९८२ को दिल्ली के गाँधीनगर में आपने तपस्वीरत्न श्री समतिप्रकाशजी के सान्निध्य में आहती दीक्षा ग्रहण की और श्री आशीषमुनिजी के शिष्य कहलाये। आपके एकमात्र शिष्य मुनि श्री भरतमुनिजी हैं। मुनि श्री. मणिभद्रजी 'सरल' आपका जन्म ८ अप्रैल १९६७ को नेपाल के आरुखर्क नामक ग्राम के ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम श्री दधीराम सुवेदी व माता का नाम श्रीमती विमला सुवेदी है । बाल्यकाल से ही आपकी रुचि आध्यात्मिकता की ओर थी। १४ वर्ष की उम्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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