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________________ २२९ आचार्य लवजीऋषि और उनकी परम्परा ११८, १२० दिन तक के आयंबिल आपने किये हैं। दो बार आयंबिल का वर्ग तप, पाँचपाँच महीने की मौन तप-साधना आपके संयममय जीवन की विशेषताएं हैं। प्रतिदिन प्रात: २.३० बजे उठकर चौबीस तीर्थकर और महामंत्र की आराधना से आपकी दिनचर्या का शुभारम्भ होता है। एकाग्रता और तल्लीनता से बहुत बार आन्तरिक घटनाओं की पूर्व जानकारी आपको हो जाती है। कई बार दैवी शक्तियों से आपका साक्षात्कार भी हुआ हैऐसी लोगों की मान्यता है । समग्र जैन संघ में आप एक मात्र ऐसे सन्त हैं जिन्होंने ३०३५ विदेशी (नेपाल) व्यक्तियों को आहती दीक्षा प्रदान कर जैन मुनि बनाया है। श्रमण संघ के उपाध्याय डॉ० श्री विशालमुनिजी को दीक्षित करने का गौरव आपको प्राप्त है। आप सरल स्वभावी, मृदुभाषी, स्पष्ट वक्ता हैं। श्रमण संघीय आचार्य सम्राट पूज्य श्री आनन्दऋषिजी द्वारा सलाहकार पद पर सुशोभित होने का सौभाग्य आपको प्राप्त है। विश्वशांति और प्राणी मात्र के कल्याण के लिए आप मंगलमय मंगलपाठ प्रदान करते हैं जिसे सुनने के लिए देश के कोने-कोने से जनसमुदाय उमड़ पड़ता है। आपके दस शिष्य हैं- उपाध्याय डॉ० विशालमुनिजी, श्री आशिषमुनिजी, श्री हर्षवर्द्धनजी, श्री अभिषेकमुनिजी, श्री सौरभमुनिजी, श्री आगममुनिजी, श्री श्रेणिकमुनिजी, श्री जयन्तीमुनिजी, श्री दीपचंदजी और श्री समकितमुनिजी। उपाध्याय श्री डॉ. विशालमुनिजी ____ आपका जन्म ११ दिसम्बर १९५३ को नेपाल के कार्किनेट पर्वत नामक ग्राम में हुआ। आपके पिता का नाम पं० श्री वासुदेव उपाध्याय तथा माता का नाम श्रीमती नन्दकला देवी है। २२ जनवरी १९७२ को कांधला (उ०प्र०) में उत्तर भारतीय प्रवर्तक मुनि श्री शान्तिस्वरूपजी के श्री चरणों में आपने आर्हती दीक्षा ली। आप एक गहन अध्येता हैं। आगम, वेद, वेदान्त, जैन इतिहास आदि विषयों का आपने तलस्पर्शी अध्ययन किया है। शास्त्री, एम.ए., पी-एच.डी., डी.लिट आदि उपाधियों से आप विभूषित हैं। उपाध्याय पद से विभूषित आपका जीवन कुन्दन की भाँति खरा है। ज्ञानपिपासु, विनयशील, विवेकशील, गुरुजनों के प्रति समर्पण, अल्प एवं मृदुभाषी, वाचस्पति की भाँति अनिरुद्ध वाणी प्रवाह आदि आपके विशाल जीवन के सार हैं। आपके द्वारा रचित एक दिव्य व्यक्तित्व, आत्म-सम्पदा, पउमचरिउ एवं रामचरित मानस के पात्रों का तुलनात्मक अध्ययन, विशाल-वाणी एवं विशाल ज्योति के अनेक भाग प्रकाशित हो चुके हैं। आपके दो प्रमुख शिष्य हैं- मुनि श्री विचक्षणमुनिजी और मुनि श्री विरागमुनिजी। मुनि श्री आशीषमुनिजी आपका जन्म २८ मार्च १९५३ को नेपाल के कार्किनेट पर्वत में हुआ। आपके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001740
Book TitleSthanakvasi Jain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain, Vijay Kumar
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2003
Total Pages616
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & religion
File Size10 MB
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